इंफाल। मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरण 4 और 8 मार्च को संपन्न हुए चुनाव के बाद अब मतगणना का सभी को इंतजार है। ऐसे में सरकार बनाने को लेकर कयासों का बाजार गर्म हो चुका है।
राजनेताओं के लिए मतगणना से पहले की रात बेहद बड़ी होने वाली है। कांग्रेस पार्टी राज्य में चौथी बार सरकार बनाने का दम भर रही है तो भाजपा पहली बार मणिपुर में अपनी सरकार बनाने के आत्मविश्वास से लबरेज दिख रही है।
चुनाव प्रचार पर नजर डालें तो कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को छोड़कर अन्य कोई बड़ा चेहरा राज्य में चुनाव प्रचार करने के लिए नहीं आया। ऐसे कांग्रेस पार्टी चनावी बैतरणी पार करने के लिए पूरी तरह से मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह के सहारे छोड़ दिया।
जबकि भाजपा की ओर नजर डालें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, शिक्षा मंत्री प्रकाश जावडेकर के साथ ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, महासचिव राममाधव के साथ ही असम के कई कद्दावर नेता पिछले एक वर्ष से चुनावी पीच तैयार करते नजर आए।
पहली बार भाजपा ने राज्य की सभी 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार सिर्फ खड़े ही नहीं किए बल्कि उनका जमकर प्रचार किया। प्रधानमंत्री से लेकर सभी नेताओं ने कांग्रेसी की इबोबी सरकार पर भ्रष्टाचार, आर्थिक नाकेबंदी के साथ ही कई आरोप मढ़े, जबकि कांग्रेस इसका जवाब देती रही। कांग्रेस ने 59 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
हालांकि राहुल गांधी व इबोबी सिंह ने भी भाजपा पर नगा समझौता के साथ आर्थिक नाकेबंदी के लिए केंद्र सरकार को निशाने पर लिया। अब शनिवार को मतगणना के बाद ही पता चलेगा कि किसके दावों में कितना दम है। वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला ने भी आंदोलन के बाद राजनीति की नई पारी की शुरुआत की है।
शर्मिला की पार्टी ने कुल तीन उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं। अब देखना होगा कि इरोम के दावों व मुद्दे से जनता कितना प्रभावित होती है। अगर उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो सरकार बनाने में उनकी भी अहम भूमिका तब हो सकती है जब सरकार बनाने में सीटों की संख्या कम पड़े।
कुल मिलाकर एग्जिट पोल ने राजनेताओं के दिलों की धड़कनें तो तेज कर दी हैं। उल्लेखनीय है कि पहले चरण के 38 सीटों के लिए मतदान में 86.50 प्रतिशत मतदान हुआ था, जबकि दूसरे चरण की 22 सीटों के लिए 86 प्रतिशत मतदान हुआ था।
चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो 2009 के बाद इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। यह सोचना होगा कि क्या इतनी तादाद में मतदान कांग्रेस सरकार की वापसी के लिए है या फिर सत्ता बदलने के लिए। इस पहेली का उत्तर 11 मार्च की सुबह मतगणना आरंभ होने के बाद ही मिलेगा।
चुनाव आयोग भी राज्य में चुनावों से पूर्व फैली हिंसा के बीच शांतिपूर्ण मतदान कराकर अपनी पीठ ठोंक रहा है तो इसमें किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। कारण जिस तरह के हालात राज्य के थे, ऐसे में पूरी तरह से शांतिपूर्ण मतदान दूर की कौड़ी दिखाई दे रही थी।
चुनाव आयोग ने सभी पोलिंग बूथों पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती कर सुरक्षा-व्यवस्था को बेहद पुख्ता बना दिया।