भोपाल। दुनिया की सात अरब जनसंख्या में प्राकृतिक आपदाओं को छोड़ दें तो ज्यादातर समस्यायों के लिए हम ही जिम्मेदार हैं। समस्याएं हमारे द्वारा ही पैदा की गई हैं, यदि विश्व को इससे मुक्त करना है तो हमें प्रेम का आश्रय लेना होगा।
दुनिया भारत की ऋणी है, कि उसने सबसे पहले सभी धर्म और पंथों को एक साथ मिलकर रहना सिखाया है। यह भारत भूमि ही है जहां इस्लाम, ईसाई, पारसी इत्यादि धर्म बाहर से आये। लेकिन उन्हें यहां किसी प्रकार का कोई भय कभी नहीं रहा। क्योंकि इन सभी के साथ भारत के मूल धर्म जैसे-बौद्ध, सिख, जैन, सनातन प्रेम से मिलकर रहते हैं।
उक्त उद्गार परमपावन बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने रविवार को मध्यप्रदेश विधानसभा में व्यक्त किए । संस्कृति विभाग के आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मानव का मूल स्वभाव करुणा है, इसी करुणा के माध्यम से हम दुनिया को अच्छा खुशहाल बना सकते हैं।
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है, इस व्यवस्था में आमूलचूक परिवर्तन करते हुए उसमें प्रेम और करुणा बढ़ाने की जरूरत है, तभी सही अर्थों में मानवीयता का विस्तार चहुंओर दिखाई देगा।
बौद्ध धर्मगुरु ने कहा कि मां के सानिध्य में बच्चे का सर्वांगीण विकास होता है, जबकि उन बच्चों को जिन्हें मां का प्रेम नहीं मिल पाता वे भावनात्मक रूप से हमेशा ही अपने को कमजोर महसूस करते रहते हैं। तथा उनके मन में हमेशा प्रेम के अधूरेपन की पीड़ा बनी रहती है।
उन्होंने कहा कि मेडिकल सांईंस भी यह प्रूफ कर चुका है कि जिस व्यक्ति में करूणा, मैत्री, प्रेम का भाव भरा रहता है उसकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमताएं अपेक्षाकृत एक आम व्यक्ति से होती हैं।
इसलिए यदि हम ऐसा परिवेश बनाए कि जिसमें कि ज्यादा से ज्यादा लोगों में करूणा का भाव भर सके तो यह तय मानिए कि हमारे आसपास की अधिकांश समस्याओं का स्वत: ही निर्मूलन हो जाएगा। दलाई लामा ने कहा कि मानव के मूलचित्त का स्वभाव करूणा और प्रेम ही है।
अत: इसी के बढ़ने से सामाजिकता का व्यास बढ़ेगा। बौद्ध धर्मगुरु ने कहा कि जरूरी नहीं कि सभी लोग धर्म का अनुसरण करने वाले हों। दुनिया की सात अरब की जनसंख्या में एक अरब लोग नास्तिक हैं। अब इन लोगों को सुख कैसे मिले यह एक बड़ा प्रश्न है।
उन्हें भी सुख, अपने अंदर करूणा के भाव की वृद्धि करने पर ही मिलेगा। आज अमेरिका जैसे देशों के उदाहरण हमारे सामने हैं, जो धन से तो अमीर है लेकिन मानसिक रूप से दरिद्र है। उन्हें भी अपने उद्धार के लिए प्रेम और करूणा का मूलमंत्र चाहिए।
बौद्ध धर्म गुरु ने कहा कि हमें अपनी ज्ञान, प्रज्ञा का उपयोग प्रेम करूणा के विकास के लिए करना चाहिए। इसी सिद्धांत पर दुनिया में सर्व धर्म सद्भाव पैदा होगा। यह आध्यात्मिक रूप से दुनिया को सुखी बनाने के लिए भी जरूरी है।
वहीं उनका यह भी कहना था कि सभी धर्मों का अपना महत्व है। जैसे कि अलग-अलग दवाईयां, भिन्न–भिन्न बीमारियां ठीक करती है, इसी प्रकार सभी प्रकार की मानसिकता के लोगों के लिए विभिन्न पंथों एवं धर्मो को आत्मसात करने का महत्व है।
दलाई लामा ने अपने उद्बोधन के अंतिम पायदान पर भारत की जाति व्यवस्था को जड़ से मिटाने का आव्हान भी किया। उन्होंने कहा कि यह इस देश की सबसे बड़ी बुराई है, इससे समाज का कभी भला नहीं हो सकता, इसे नष्ट करने के लिए विभिन्न धर्मगुरुओं को एक मंच पर आकर जनजाग्रति के प्रयास करते हुए अंर्तजातीय विवाह को प्रोत्साहन देना चाहिए।
साथ ही उन्होंने आधुनिक क्वांटम फिजिक्स से भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा की तुलना की और बताया कि जैसे आज विज्ञान खोज रहा है और उस पर चलने की बात कह रहा है उन सिद्धांतों की भारत में व्याख्या आज से दो हजार वर्ष पूर्व नागार्जुन कर चुके हैं।
भले ही आधुनिक दुनिया के लिए क्वांटम फिजिक्स नई हो, किन्तु भारत में तो यह पहले से ही परिभाषित कर दी गई है।