लखनऊ। सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी के बाद अयोध्या राम जन्मभूमि मुद्दा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। शीर्ष अदालत ने मामले को संवेदनशील और आस्था से जुड़ा बताते हुए इसे आपसी बातचीत के जरिए हल करने की सलाह दी है।
मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायाधीश संजय किशन कौल की पीठ ने मंगलवार को कहा कि दोनों पक्षों को मिल-बैठकर इस मुद्दे को अदालत के बाहर हल करना चाहिए।
दरअसल वर्षों से अदालत की चौखट पर अटका अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद 489 साल पुराना है। यह विवाद वर्ष 1528 में प्रारम्भ हुआ जब मुगल शासक बाबर ने अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे हिन्दू समाज के लोग भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। बाबर द्वारा बनवाई गई इस मस्जिद को बाद में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया।
विवाद से जुड़े प्रमुख घटनाक्रम
1-मस्जिद निर्माण के बाद हिन्दुओं ने आरोप लगाया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। वर्ष 1853 में इस मुद्दे पर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई। इस हिंसा में कई लोगों को जान चली गई थी।
2-दंगे के बाद तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने 1859 में विवादित भूमि में तारों की एक बाड़ खड़ी करके हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग प्रार्थना की इजाजत दी।
3-वर्ष 1885 में यह मामला पहली बार अदालत पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद की अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।
4-आजादी के बाद 1949 से विवादित स्थल पर भगवान राम की नियमित पूजा होने लगी। इसके बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
5-वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी। उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की।
6-वर्ष 1950 में ही राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिन्दुओं की प्रार्थना जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राम लला की मूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया।
7- वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए एक दूसरा मुकदमा दायर किया।
8-वर्ष 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड सामने आया और उसने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
9-वर्ष 1984 विश्व हिन्दू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराकर वहां एक भव्य मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।
10-वर्ष 1986 में पहली फरवरी को फैजाबाद के जनपद न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिन्दुओं को पूजा की अनुमति दी। इस आदेश के बाद वहां बंद ताले दोबारा खोले गए। मुसलमानों ने इस आदेश के विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
11- वर्ष 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने विश्व हिन्दू परिषद को राम मंदिर निर्माण के लिए औपचारिक समर्थन देना शुरू किया। इसके बाद मंदिर आंदोलन में तेजी आई।
12- वर्ष 1989 में पहली जुलाई को इस मामले में भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।
13- वर्ष 1989 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत प्रदान की।
14-मंदिर निर्माण आंदोलन को गति देने के लिए वर्ष 1990 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। रथ यात्रा के दौरान आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद भाजपा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। फिर वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
15-वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।
16-वर्ष 1992 में छह दिसंबर को कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढाचा गिरा दिया।
17- वर्ष 1992 में ही विवादित ढांचे में तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
18-वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिन्दुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
19-वर्ष 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन न्यायधीशों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।
20-वर्ष 2003 में इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने अयोध्या में खुदाई की। पुरातत्व विभाग का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।
21- वर्ष 2003 में एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।
22- वर्ष 2005 के जुलाई माह में संदिग्ध आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। वहां तैनात सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।
23-वर्ष 2009 में लिब्रहान आयोग ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी।
24-वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।
25-वर्ष 2010 में ही 30 सितंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने इस मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने इस फैसले में विवादित जमीन को तीनों पक्षकारों-रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बराबर बांटने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने उच्चतम न्यायालय में अपील दाखिल कर रखी हैं जो पिछले छह साल से लंबित हैं।
26-इन्हीं अपीलों पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 21 मार्च 2017 को सलाह दी कि इस मामले को आपसी बातचीत से हल किया जाए।
27-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उच्चतम न्यायालय के इस सलाह का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को मिल-बैठकर इस मामले का हल निकालना चाहिए। यह भी कहा कि प्रदेश सरकार इस मामले में हरसंभव मदद के लिए तैयार है।