नई दिल्ली। अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भारत दौरे के आखिरी दिन मंगलवार को अपने संबोधन में अमरीकी शहर शिकागो में स्वामी विवेकानंद के भाषण का जिक्र कर और चर्चित फिल्म “दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे” के लोकप्रिय संवाद बोलकर लोगों का दिल जीत लिया।
ओबामा ने विविधता को भारत और अमरीका की ताकत बताते हुए कहा कि भारत तभी सफल होगा, जब वह धर्म के नाम पर समाज को बंटने नहीं देगा। ओबामा ने यहां सीरीफोर्ट सभागार में इंडिया एंड अमरीका: दफ्यूचर वी कैन बिल्ड टुगैदर विषय पर करीब 2000 चुनींदा लोगों को संबोधित करते हुए भारत के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक और रक्षा रिश्तों को नए स्तर तक ले जाने का वादा दोहराया और विश्वास जताया कि दोनों देश न केवल स्वाभाविक साझेदार हैं बल्कि आने वाले दिनों में सर्वश्रेष्ठ साझेदार बनेगे।
अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत और अमरीका के मूल्यों में समानता का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस प्रकार भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, यहूदी और जैन आदि धर्मो के लोग मिलकर रहते हैं, उसी प्रकार अमरीका में भी विभिन्न नस्लों, धर्मो, वर्गो और समुदायों के लोग मिलजुलकर रहते हैं। हमारी यह विविधता दूसरे देशों के लिए एक उदाहरण है।
उन्होंने आगाह किया कि दोनों देशों को धार्मिक तथा अन्य किसी आधार पर समाज को बांटने के प्रयासों के प्रति सतर्क रहना होगा। ओबामा ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी देता है। उन्होंने कहा कि भारत तभी सफल होगा जब वह धार्मिक आधार पर समाज को बंटने नहीं देगा। भारत को शाहरूख खान, मिल्खा सिंह, मैरी कोम और कैलाश सत्यार्थी जैसे लोगों पर गर्व है। उन्होंने कहा कि जिस देश में भी धार्मिक आजादी है उसे बनाए रखना वहां की सरकारों का ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है।
ओबामा ने भारत को गरीबी से उबरने, आधारभूत ढांचे, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट शहरों के विकास और स्वच्छ ऊर्जा के विकास में मदद देने का वादा करते हुए कहा कि दुनिया में शांति और स्थिरता कायम करने में भारत की अहम भूमिका है। भारत की महिला और युवा शक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि वे दुनिया की तस्वीर बदलने की ताकत रखते हैं। भारत के अधिकांश लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं और उन पर न केवल भारत की बल्कि दुनिया का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी है।
अमरीकी राष्ट्रपति ने स्वामी विवेकानंद की 1893 की अमरीका यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि 100 साल पहले उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में अपने संबोधन की शुरूआत अमरीका की बहनों और भाइयो से किया था। इसी तर्ज पर ओबामा ने अपने भाषण में दो बार दर्शकों को भारत की बहनों और भाइयो कहकर संबोधित किया। ओबामा ने कहा कि वह अपने साथ अमरीका के लोगों की शुभकामनाएं लाए हैं। उन्होंने कहा कि भारत के गणतंत्र दिवस में हिस्सा लेने वाला अमरीका का पहला राष्ट्रपति बनना उनके लिए सम्मान की बात है।
गणतंत्र दिवस परेड में खासकर जाबांजों का जिक्र करते हुए उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि वह भी बाइक चलाना चाहते हैं लेकिन सीक्रेट सर्विस के एजेंट उन्हें इसकी अनुमति नहीं देते हैं। अमरीका और भारत के साझा लोकतांत्रिक मूल्यों का जिक्र करते हुए उन्हाेंने कहा कि दोनों देशों की भाषाएं अलग हो सकती हैं, उनका इतिहास अलग हो सकता है लेकिन दोनों ज्ञान और नवाचार के दम पर आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। दोनों देश मंगल ग्रह पर पहुंचे हैं। भारत ने तकनीक का सहारा लेकर लाखों लोगों को गरीबी से उबारा है। दोनों लोकतंत्र साथ आएं तो वे दुनिया का भविष्य बदल सकते हैं।
उन्होंने कहा कि अमरीका भारत को अपने लोगों का जीवन स्तर ऊंचा करने में मदद करेगा। भारत को आज ऊर्जा की जरूरत है। ऊर्जा होगी तभी छात्र पढ़ पाएंगे, व्यवसायी बिजनेस कर पाएगा और किसान अपना काम कर पाएगा। उन्होंने कहा कि हम अपने बच्चों को शुद्ध हवा और पानी देना चाहते हैं। अमरीका के पास ऎसी तकनीक मौजूद है जिसे वह भारत के साथ साझा करना चाहता है।
अमरीकी राष्ट्रपति ने भारतीय लोकतंत्र की सराहना करते हुए कहा कि दूसरे देशों में लोकतंत्र की स्थापना में भारत अहम भूमिका निभा सकता है। साथ ही विज्ञान और औषधि के क्षेत्र में भारत की प्रगति दुनियाभर में बीमारियों के उन्मूलन में सहायक हो सकती है। जलवायु परिवर्तन का जिक्र करते हुए उन्हाेंने कहा कि यह आज के दौर की सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती है और उनका देश अपनी जिम्मेदारी समझता है और इससे निपटने में भारत को हरसंभव मदद देगा।
भारत और अमरीका की विविधताओं का जिक्र करते हुए ओबामा ने कहा कि दोनों देशों का संविधान व्यक्तिगत आजादी और समानता पर जोर देता है। उन्होंने कहा कि मेरे दादा अंग्रेजों की सेना में रसोइये थे जबकि मोदी के पिता चाय बेचते थे। मुझे अपने देश में भेदभाव का शिकार होना पड़ा था। लेकिन एक रसोइये का पोता अमरीका का राष्ट्रपति बन सकता है और एक चायवाला भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है। सबको अपने सपने पूर करने का मौका मिलना चाहिए।
अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत की महिला शक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी देश की सफलता इस बात पर निर्भर होती है कि वहां की महिलाएं कितनी सफल हैं। समाज में महिलाओं की क्या स्थिति है। उन्होंने कहा कि भारत पहुंचने पर उन्हें जो गार्ड आफ आनर प्रदान करने वाले सैन्य दस्ते का नेतृत्व वाली एक महिला ही थी जो भारत में महिलाओं के गौरव और सशक्तिकरण का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि दोनों आदर्श देश नहीं हैं। उनकी कई कमियां हैं और अनेक खूबियां हैं। उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं लेकिन इनसे निपटने और तरक्की करने की कुंजी भी हम दोनों देशों के पास है।
ओबामा ने अपने वर्ष 2010 के भारत दौरे को भी याद किया, जब वह हुमायूं के मकबरे पर गए थे और वहां काम करने वाले कुछ श्रमिकों के परिवारों से मिले थे। उनमें से एक का बेटा विशाल अब 16 साल का हो चुका है। ओबामा ने उसका जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें यह जानकार खुशी हुई कि विशाल पढ़ाई कर रहा है और सुरक्षा बलों से जुड़ना चाहता है। यह यहां छिपी प्रतिभा का एक उदाहरण है। अमरीका के राष्ट्रपति के विशेष आमंत्रण पर विशाल और उसका परिवार ऑडिटोरियम में मौजूद था।
अपने संबोधन से पहले ओबामा तथा उनकी पत्नी ने ऑडिटोरियम में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी तथा कुछ अन्य एनजीओ के सदस्यों से मुलाकात की। सत्यार्थी जब अपने एनजीओ “बचपन बचाओ आंदोलन” के बच्चों के साथ सभागार में पहुंचे और उनका भी जोरदार स्वागत हुआ।
ओबामा ने कहा कि वह दोनों देशों के भविष्य को लेकर आशान्वित हैं और भारत का साझीदार होने पर उन्हें गर्व है। उन्होंने कहा कि मुझे आपका मित्र बनकर गर्व है। अमरीक ा, भारत का सिर्फ “स्वाभाविक साझीदार” नहीं, बल्कि “सर्वश्रेष्ठ साझीदार” बनना चाहता है। संबोधन के बाद ओबामा और मिशेल लोगों से मिले, हाथ मिलाए और फोटो भी खिंचवाई। सभागार में मौजूद लोग अपने मोबाइल फोन से तस्वीरें ले रहे थे। वे हर क्षण को कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे।
ओबामा ने अमरीका और भारत के बीच संबंधों में आई इस गर्मजोशी को चिरस्थायी बनाए रखने के इरादे का इजहार करते हुए कहा कि मैं भले ही दो बार भारत आने वाला पहला राष्ट्रपति हूं, पर आखिरी नहीं हूं क्योंकि हम भारत में और भारत के लोगों में विश्वास करते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ने अपने संबोधन का समापन जयहिन्द कहकर किया। उन्होंने इसके बाद मंच से नीचे उतर कर उपस्थित मेहमानों से मुलाकात की और हाथ मिलाए। ओबामा का यह आखिरी सार्वजनिक कार्यक्रम था।