चेन्नई। भारतीय रॉकेट ने दो टन वजनी दक्षिण एशियाई उपग्रह के साथ शुक्रवार शाम श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी।
आंध्र प्रदेश स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण मंच से भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी-एफ09) ने ठीक शाम 4.57 बजे अंतरिक्ष की तरफ प्रस्थान किया।
49 मीटर ऊंचा, 415 टन वजनी रॉकेट 2,230 किलोग्राम वजनी दक्षिण एशिया उपग्रह को कक्षा में स्थापित करेगा। यह उपग्रह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) के देशों के लिए भारत का उपहार होगा।
हालांकि इसमें पाकिस्तान शामिल नहीं है, क्योंकि उसने यह कहते हुए इससे अलग हो गया कि उसका अपना खुद का अंतरिक्ष कार्यक्रम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से कहा था कि दक्षेस देशों के उपयोग के लिए एक उपग्रह विकसित किया जाए।
इस उपग्रह पर लगभग 235 करोड़ रुपए लागत आई है। इस उपग्रह का प्रारंभ में दक्षेस उपग्रह रखा गया था, लेकिन पाकिस्तान के इससे अलग होने के निर्णय के बाद इसका नाम अब दक्षिण एशिया उपग्रह रहेगा। इसकी उम्र 12 साल है।
मोदी ने अपने हाल के मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में कहा था कि दक्षिण एशिया उपग्रह क्षेत्रीय आर्थिक एवं विकास संबंधित प्राथमिकताओं को पूरा करने में एक लंबी दूरी तय करेगा।
मोदी ने कहा था कि प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाना, टेलीमेडिसिन, शिक्षा, गहन आईटी संपर्क या लोगों से लोगों के बीच संपर्क बनाने में यह उपग्रह पूरे क्षेत्र की प्रगति में एक मील का पत्थर साबित होगा।
एक अधिकारी के अनुसार इसरो ने प्रयोगात्मक आधार पर उपग्रह के लिए विद्युत शक्ति जोड़ने का निर्णय लिया है।
अधिकारी ने कहा कि हमने विद्युत शक्ति के कारण पारंपरिक ईंधन की मात्रा कम नहीं की है। हमने भविष्य के उपग्रहों में उपयोग के लिए इसके प्रदर्शन को जांचने हेतु विद्युत शक्ति की सुविधा जोड़ी है।
अधिकारी ने कहा कि विद्युत शक्ति के साथ अगला उपग्रह जीसैट-20 वर्ष 2018 में लांच किया जाएगा।
जीएसएलवी एक तीन स्तरीय/इंजन रॉकेट है। पहले स्तर में ठोस ईंधन होता है, जबकि दूसरा स्तर तरल ईंधन का होता है, और तीसरा क्रायोजेनिक इंजन है।