जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर की लोक संस्कृति में गोदना कला का अत्यंत महत्व है, न केवल गोंड समाज वरन माडिया, मुरिया समाज व हिंदू समाज में भी इसका प्रचलन है। जिस तरह से शहरी पाश्चात्य सभ्यता को अपनाकर टैटू बनवाते हैं, उसी तरह ग्रामों में गोदना कला को ग्रामीण अपनाते हैं, इसके बिना बेटी ब्याही नहीं जाती।
कोण्डागांव के ग्राम बासना से आई गोदना कलाकार चंपा मरकाम और सविता नेताम बताती हैं कि गोदना कला एक कुदरती कला है। इस कला के जानकार न केवल इससे महिलाओं का श्रृंगार करते हैं, वरन अनेक बीमारियों का भी इससे इलाज किया जाता है। वे यह भी कहती हैं कि वे लगभग 15 साल से इस कला से जुड़ी हैं और पूरे गांव के अलावा आसपास के क्षेत्रों के लोग इस कला को अपनाते हैं।
ठंड के समय में ही महिला गोदना गोदवाती है। गर्मी के मौसम में यह वर्जित है। उन्होंने बताया कि पहली बार उन्हें शहर आकर अपनी कला के प्रदर्शन का मौका मिल पाया है। धरमपुर स्थित भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण परिसर में इस कला को कागज पर उकेर रही। इन महिला कलाकारों ने बताया कि सरकार ने कभी भी इस कला के प्रचार-प्रसार के लिए हमारा सहयोग नहीं किया और न ही कभी संस्कृति विभाग के किसी शिविर में हमे कला प्रदर्शन का मौका मिल पाया।
सरकार शायद बस्तर की इस कला से अंजान है। इसलिए हमे प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। गोदना कलाकारों का कहना है कि गोंडवाना समाज में यह मान्यता है कि गोदना कला जीवन के अंत समय तक शरीर में मौजूद रहती है। और आत्मा के साथ मिल जाती है। उन्होंने ने बताया कि बस्तर की गोदना कला की डिजाईन अन्य राज्यों से अलग है।