अजमेर। अजमेर विकास प्राधिकरण के बहुचर्चित फर्जी पट्टा प्रकरण में पुलिस, प्रशासन के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की भी एंट्री हो चुकी है। कहा तो यह जाता है जहां एसीबी का दखल हो जाए वहां दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है। लेकिन इस मामले में पेंच दर पेंच फंसते जा रहे हैं।
मीडिया रिपोटों की माने तो एसीबी ने मुख्य सचिव के 4 सितंबर 1997 के एक आदेश का हवाला देकर एडीए की बहुचर्चित फर्जी पट्टा प्रकरण में की गई प्रशासनिक जांच को एसीबी के समानांतर जांच मानते हुए आपत्ति दर्ज कराई है। इतना ही नहीं बल्कि एडीए की तरफ से कराई जा रही जांच को मुख्य सचिव के आदेशों की अवहेलना करार दिया है। इससे सवाल यह उठने लगा है कि क्या कलक्टर को एसीबी के दिशा निर्देशों के तहत काम करना पडेगा।
एडीए फर्जी पट्टा प्रकरण : दो जेल में, अब किसकी बारी?
बतादें कि शिवशंकर हेडा भले ही एडीए चैयरमेन के रूप में कमान संभाल रहे हो लेकिन प्रशासनिक स्तर पर जिला कलक्टर ही एडीए के सर्वेसर्वा माने जाते हैं। फर्जी पट्टा मामले में जिला कलेक्टर ने प्रशासनिक जांच के आधार पर अब तक कार्रवाई को अंजाम दिया है।
एडीए प्रशासन की सजगता ही परिणाम है कि इस मामले में लिप्त दो आरोपी बाबू खान और भोलू खां इस समय सलाखों के पीछे हैं और एडीए के ही दो बाबू सस्पेंड कर दिए गए, कुछ और को लापरवाही का दोषी माना गया है।
एडीए उपायुक्त सुखराम खोखर की ओर से की गई प्रशासकीय जांच के आधार पर ही जिला कलक्टर गौरव गोयल ने हाल ही में एपीओ चल रहे वरिष्ठ लिपिक अशोक रावत को भी सस्पेंड कर दिया।
दीगर बात है कि फर्जी पट्टा मामला उजागर होते ही एडीए ने तत्काल इस मामले में सिविल लाइन थाना में एफआईआर दर्ज कराई थी। इसी आधार पर पुलिस ने दो आरोपियों बाबू खान और भोलू खां को अरेस्ट कर रिमांड पर भी लिया था। बाद में दोनों को जेल भेज दिया गया।
इस बीच एसीबी ने भी अपने स्तर पर मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी। बतादें कि एसीबी की जांच शुरू होने के बाद से अब तक कोई बडी कार्रवाई सामने नहीं आई है। अभी मामला सिर्फ चिट्ठी पत्री में ही उलझ रहा है।