नई दिल्ली। अस्पतालों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा आयोजित किए जाने वाले रक्तदान शिविरों में प्राय: संपूर्ण रक्त ही एकत्र किया जाता है, जबकि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि संपूर्ण रक्त दान में लेने की बजाय इसके सिर्फ कुछ अवयव ही दान में एकत्र किए जाने चाहिए।
भारत की आबादी भले ही 1.3 अरब हो चुकी है, लेकिन रक्त के भंडारण में अब भी 20 से 25 प्रतिशत तक की कमी है। रक्तदान समाज की एक जरूरत है, लेकिन इस काम के लिए किसी पर दबाव नहीं डाला जा सकता। यह एक स्वैच्छिक कार्य है। इसके अलावा, स्वेच्छा से दान किए गए रक्त का अधिकतम प्रयोग किया जाना चाहिए।
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आईएमए के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों को अब कायदे में ‘ब्लड कम्पोनेंट डोनेशन’ कैम्प कहा जाना चाहिए। यदि ऐसे किसी शिविर में रक्त एक ही बैग में एकत्र किया जा रहा हो, तो लोगों को ऐसे शिविर में रक्तदान नहीं करना चाहिए। आमतौर पर दो कम्पोनेंट प्रयोग किए जाते हैं और 100 मिली का बैग शिशुओं के प्रयोग के लिए रहना चाहिए।
एक यूनिट रक्त से तीन-चार मरीजों की जरूरत पूरी होनी चाहिए। हालांकि, इसे संपूर्ण रक्त के रूप में बेकार कर दिया जाता है, जिससे अन्य जरूरतमंद मरीजों को रक्त नहीं मिल पाता।
नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल के नए नियमों के मुताबिक, रक्त की बर्बादी नहीं होनी चाहिए। बचा हुआ प्लाज्मा एल्बुमिन और इंट्रावीनस इम्युनोग्लोबिन्स जैसे उत्पाद तैयार करने के काम में लिया जा सकता है। कम मिलने वाले ब्लड ग्रुप वाले लोगों को भी शिविर में रक्तदान की बजाय सीधे जरूरतमंद लोगों को रक्तदान करना चाहिए।
फिलहाल, रक्तदान से पहले जो परीक्षण किए जाते हैं वे इनमें से कुछ जानने के लिए होते हैं- रक्त समूह यानी ए, बी, ओ और आरएच फैक्टर तथा हिपेटाइटिस बी एवं सी वाइरस, एचआईवी 1 एवं 2, वीडीआरएल, तथा मलेरिया।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि सुरक्षित रक्त ट्रांसफ्यूजन के लिए, सरकार द्वारा निर्धारित परीक्षणों से अलग टेस्टों की भी व्यवस्था भी होनी चाहिए, जैसे कि माइनर ब्लड ग्रुप और न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट।
उन्होंने कहा कि चिकित्सकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे डोनर को इन टेस्टों की जानकारी दें और रक्तदाता एवं रक्तग्राही दोनों को ही अतिरिक्त परीक्षणों की मांग करने का अधिकार होना चाहिए। इस बारे में जब तक एक राष्ट्रीय नीति अमल में नहीं आती, एक डॉक्टर को चाहिए कि वह दाता व ग्राही दोनों की इस बारे में मदद करे।
साथ ही सहमति ली जानी चाहिए कि ये टेस्ट न कराने के क्या खतरे हो सकते हैं। भले ही ये टेस्ट कितने भी छोटे क्यों न हों। इन परीक्षणों से खर्च बढ़ सकता है, लेकिन मरीज की सुरक्षा अहम है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि किसी को रक्त तभी चढ़ाना चाहिए, जब बहुत जरूरी हो। यदि सिर्फ एक यूनिट रक्त चाहिए हो तो रक्त नहीं चढ़ाना चाहिए। यदि दो यूनिट रक्त चाहिए, तब सिर्फ एक यूनिट रक्त चढ़ाना चाहिए। यदि हीमोग्लोबिन 7 से अधिक हो, तो इंट्रावीनस आयरन पहले दिया जाना चाहिए, ताकि ट्रांसफ्यूजन से होने वाले संक्रमण से बचा जा सके।
रक्तदान से पहले इन बातों पर गौर करें :
– यदि किसी व्यक्ति का रक्तचाप, हीमोग्लोबिन, और वजन स्टेबल हो तभी उसे रक्तदान करने देना चाहिए।
– रक्तदान से पहले कुछ खा लें। इससे पूर्व मदिरापान या धूम्रपान न करें।
– खूब पानी पीएं। इससे आपके शरीर में रक्तदान के बाद पानी की कमी नहीं होगी। सोडा वाले पेय न लें।
– रक्तदान के तुरंत बाद अधिक मेहनत वाला कोई काम न करें।