हे नाथ इस संसार में आपने हमें भेजा है, ऐसा मेरा विश्वास है। अगर ऐसा ना होता तो हम जन्म ही क्यों लेते क्योंकि हम जानते हैं कि इस संसार में सब कुछ करने के बाद भी वापस जाना पड़ता है। यह हकीकत जानते हुए भी हम लोभ और स्वार्थ वश अपना व पराया का अन्तर कर आपस में बैर विरोध कर आखिर तेरी रचना को ही हम बदनाम करते हैं।
हे नाथ तू दया कर और निर्मल मन व बुद्धि मुझे प्रदान कर ताकि मैं भेद करना बंद कर दूं ओर तेरी हर रचना को प्रेम से स्वीकार कर सकूं। मेरा यह विचार कभी मत बदलने दे।
अगर ऐसा ना कर सके तो नाथ इस संसार में हमें वापस मत उत्पन्न करना यदि करना जरूरी भी हो तो फिर तू मुझे किसी जंगल का हवादार वृक्ष बनाना ताकि मेरी छाया में आकर प्राणी बैठकर दो घड़ी विश्राम कर, स्वर्ग से भी ज्यादा आनंद ले सके और वह पल मुझे तेरा रूप ही लगेगा।
हे नाथ हम संसार मे लोकाचार वश, अनावश्यक रूप से कृत्रिम जीवन को जी कर, केवल अपना कद ऊंचा करने के लिए हम दूसरों को नीचा दिखाने के लिए, उसकी सात पीढियों को, जो अब इस दुनिया में नहीं है उसको भी कोस कर, एक मृत प्राणी का अपमान कर अपने आप की श्रेष्ठता का झूठा प्रदर्शन करते हैं। ये नाथ, ये अवगुण मुझे प्रदान मत कर।
अपने स्वार्थवश के कारण जिन हजारों प्राणियों का वध कर अशोक सम्राट का दिल पिघल गया। केवल अपने शासन व राजा बनने के लिए मैने कई अहित कर दिए ओर सभी राजाओं को मौत के घाट उतार दिया ओर सच को झूठ बता सभी को गुमराह कर दिया। जब एक क्षण के लिए अशोक ने सोचा तो उसने अपने आप को बदल कर इस दुनिया का महान सेवक बन कर अपना शेष जीवन सेवा में ही लगा दिया।
हे नाथ मैं तहेदिल से हर प्राणी की सेवा कर सकूं ऐसे विचार मेरे मन में सदा बने रहे, ये ही विचार मेरे मन में पैदा कर। छल कपट से मैं अपने सुख के लिए दूसरों को अकारण ही नीचा दिखाने की कोशिश करूं, ये विचार मुझ में पैदा मत कर।
वास्तव व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के कारण सबको झूठा व अपने आप को सच्चा सेवक स्थापित करने का काम करके अंत मे परमात्मा के सामने हार जाता है और परमात्मा उसे नकारात्मक शक्ति समझ कर नकार देता है अतः स्वार्थ व झूठ की दुनिया त्याग देना ही श्रेयकर है।
सौजन्य : भंवरलाल