पोर्ट ऑफ स्पेन। 44 फीसदी भारतीय मूल की आबादी वाले कैरेबियाई देश त्रिनिदाद एवं टोबैगो की ओर से मिस वर्ल्ड-2017 में हिस्सा लेने के लिए चुनी गईं मिस त्रिनिदाद एवं टोबैगो को इसी वर्ष अक्टूबर में चीन में होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिया मिस वर्ल्ड-2017 में हिस्सा लेने के दौरान हिंदू रीति से अभिवादन करने की सलाह दी गई है।
उनसे कहा गया है कि जब वह किसी से मिलें तो अगले व्यक्ति का अभिवादन ‘सीता राम’ या नमस्ते कहकर करें।
चीन के सान्या में होने वाले मिस वर्ल्ड-2017 में चांदिनी चंका बहुसांस्कृतिक देश त्रिनिदाद एवं टोबैगो की ओर से किसी अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली पिछले 40 वर्षो में भारतीय मूल की पहली महिला होंगी।
त्रिनिदाद एवं टोबैगो के शीर्ष सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन ‘नेशनल काउंसिल ऑफ इंडियन कल्चर’ के जनसंपर्क अधिकारी सुरुजदेव मुंगरू ने इसी हफ्ते इससे पहले दिवाली नगर नें चंका के सम्मान में आयोजित समारोह के दौरान चंका से यह अनुरोध किया।
चंका ने पिछले रविवार को मिस त्रिनिदाद एवं टोबैगो प्रतियोगिता जीती। कई मजबूत प्रतिस्पर्धी सुंदरियों को हराकर देश की सर्वसुंदरी का खिताब जीतने वाली चंका को गत विजेता डेनिएला वैलकॉट ने ताज पहनाया।
मुंगरू ने कहा कि मैं चंका जी को याद दिलाना चाहता हूं कि जब वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर पदार्पण करेंगी..तो कृपया हिंदू रीति से अभिवादन करना और सीता राम या नमस्ते कहना नहीं भूलें।
मुंगरू ने कहा कि चंका ने जब अक्टूबर 2015 में मिस दिवाली नगर क्वीन कॉन्टेस्ट जीता था, तब उन्होंने प्रतियोगिता के दौरान ही इतने आत्मविश्वास का परिचय दिया था, जैसे परिणाम घोषित करने के पहले ही वह प्रतियोगिता जीत चुकी हों।
उन्होंने कहा कि उम्मीद करता हूं कि अक्टूबर में चीन में होने वाले मिस वर्ल्ड सौंदर्य प्रतियोगिता के दौरान भी चंका की यह खूबियां सामने आएंगी और वह एक हिंदू महिला के तौर पर त्रिनिदाद एवं टोबैगो को वह गौरव और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिलाएंगी।
चंका अपने माता-पिता देब्रा और कृशेनदाथ चंका की एकमात्र बेटी हैं, जो सैन जुआन के अरांग्वेज में रहते हैं। चंका का एक भाई भी है। चंका अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बैचलर की डिग्री हासिल कर चुकीं हैं और वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय ने उन्हें सितंबर में विधि की डिग्री देने की स्वीकृति दे दी है।
चंका का सपना अटॉर्नी बनने का है। त्रिनिदाद एवं टोबैगो में रहने वाली अधिकांश भारतीय मूल की आबादी उत्तर प्रदेश और बिहार मूल की है। इन दोनों प्रांतों के लोगों को यहां 1845 से 1917 के बीच कृषि कार्य में सहयोग के लिए लाया गया था।