सबगुरु न्यूज उदयपुर। आॅटिज्म स्पेक्ट्रम डिस आॅर्डर से ग्रसित बच्चों के लिए स्टेमसेल थैरेपी नई उम्मीद लेकर आई है।
यह जानकारी मुम्बई के न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट के निदेशक डाॅ. आलोक शर्मा ने गुरुवार को उदयपुर में पत्रकार वार्ता में दी। उन्होंने बताया कि आॅटिज्म के उपचार के लिए वे न्यूरोजेजन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट आॅटिज्म के उपचार में भारत का एकमात्र स्टेमसेल थैरेपी का केन्द्र है। अब तक यह इंस्टीट्यूट इस तकनीक से दुनिया भर के एक हजार से अधिक आॅटिस्टिक बच्चों के इलाज की पेशकश कर चुका है। उन्होंने बांसवाड़ा के 7 वर्षीय अदनान तबरान को भी पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किया जो पूर्व में बोलता तक नहीं था। अब वह मोबाइल पर गेम भी खेलता है।
डाॅ. शर्मा ने बताया कि थैरेपी में मरीज की बोन मैरो में से स्टेम सेल अलग कर उन्हें फिर से उसी मरीज के शरीर में स्पाइन में निर्धारित जगह पर प्रवेश कराया जाता है। इसके बाद कुछ और भी जरूरी अभ्यास होते हैं जिन्हें बच्चे की मां को सिखाया जाता है जिससे वे घर पर भी कर सकें।
उन्होंने बताया कि 10 साल तक की उम्र तक उपचार लेने पर परिणाम अच्छे आते हैं। उसके बाद 20 साल तक की उम्र में ठीक-ठाक परिणाम मिलते हैं, लेकिन इसके बाद उम्र बढ़ने पर परिणाम उतने अच्छे नहीं होते, क्योंकि तब तक मस्तिष्क विकसित होकर स्थायी आकार ले चुका होता है। डाॅ. शर्मा ने कहा कि इस उपचार पद्धति में आणविक, संरचनात्मक ओर कार्यात्मक स्तर पर क्षतिग्रस्त तंत्रिका ऊतकों की मरम्मत की क्षमता है।