सबगुरु न्यूज उदयपुर। उदयपुर में एक दिव्यांग युवती के अपहरण और एक माह तक सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया है। युवती ने चार लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा है कि मामले में संबंधित थाना पुलिस के टालमटोल रवैये के बाद उसने अदालत की शरण ली।
अदालत के आदेश परएफआईआर दर्ज हो गई है, लेकिन संबंधित थाना पुलिस के फिर से ढीले रवैये के चलते जांच डिप्टी को तो दे दी गई। पीड़िता और उसके परिवार को अब उनकी जान की चिंता बनी हुई है, क्योंकि आरोपियों के खिलाफ अब तक कोई एक्शन नहीं हुआ है।
मामला उदयपुर के गोवर्द्धन विलास थाना पुलिस का है। पीड़ित युवती और पिता प्रभुलाल गुर्जर ने शुक्रवार को यहां लेकसिटी प्रेस क्लब में पत्रकारों को अपनी पीड़ा बयां की। युवती का आरोप है कि 8 मई 2017 को आरोपी वेणीराम, राज पटेल, अनिल मीणा और कैलाश पटेल अपहरण करके ले गए थे और खरबर गांव में एक कमरे में एक महीने पांच दिन तक बंद रखकर बलात्कार किया।
जब भी उसने विरोध किया तो उसे चाकू दिखाकर मारने की धमकी दी। इस बीच उसके पिता प्रभुलाल गुर्जर ने पुत्री की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई। आरोपी 12 जून की रात को युवती को खरबर से बांसवाड़ा ले गए और वहां रात के अंधेरे में छोड़कर फरार हो गए। उस जगह से कुछ देर बाद पुलिस का वाहन गुजरा जिसने उसे संभाला और उदयपुर में गोवर्धन विलास थाने को सूचना दी।
गोवर्धन विलास थाने से पुलिस बांसवाड़ा पहुंची और वहां से उसे ले आई। यहां आने के बाद युवती ने पूरी आपबीती सुनाई और घटनास्थल की तस्दीक तक करवा दी। मेडिकल जांच भी हो गई। इसके बाद भी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की, उलटे उस पर समझौते का दबाव डाला। उसे मजबूर होकर न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।
पीड़िता के परिवार और उसके अन्य रिश्तेदारों ने मामले में आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की है, क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा बना हुआ है। इधर, इस मामले में अब तक पुलिस की ओर से कोई अधिकृत बयान जारी नहीं मिल सका है।
हिस्ट्रीशीटर का नाम लिया एक आरोपी ने
मामले के आरोपी वेणीराम गुर्जर और उसके परिवार ने उन पर लगाए सारे आरोपों को नकारते हुए कहा कि वे हर जांच को तैयार हैं। हालांकि, इन लोगों ने यह जरूर कहा कि क्षेत्र के ही हिस्ट्रीशीटर लालाराम गुर्जर सहित कुछ अन्य लोगों ने इस काण्ड को अंजाम दिया है। लालाराम और उसके गुर्गे इनकी बेशकीमती जमीन हथियाने के लिए ऐसे हथकण्डे अपना रहे हैं। समाज की पंचायत में भी उनका परिवार पूरी तरह से निर्दोष साबित हुआ। न तो वेणीराम से कभी पीड़िता की कोई बातचीत हुई है, न ही उसने उसका अपहरण किया है, फिर भी पूरे परिवार को बदनाम किया जा रहा है। लगातार जमीन खाली करने का दबाव बनाया जा रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम में दोनों ही पक्षों के बयानों में कितनी सच्चाई है यह तो विस्तृत जांच के बाद ही सामने आ पाएगी। हालांकि, प्रथम दृष्टया सवाल पुलिस पर भी उठे हैं कि उसने पीड़िता की बातों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया। पीड़िता को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी तब जाकर मामला दर्ज हो सका। न्यायालय के आदेश के एक माह बाद भी कोई एक्शन नहीं होना भी सवाल खड़े कर रहा है।