रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर में लगातार अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ने वाले जांबाज आईपीएस अफसर एसआरपी कल्लूरी की दोनों ही किडनी खराब हो गई हैं। जैसे ही उनकी बहन डॉक्टर अनुराधा को इस बात का पता चला, तो उन्होंने अपने भाई की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी देने का फैसला लिया। छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में इस बहन की दिलेरी को लेकर खूब चर्चा है।
डीएसपी (पुलिस वेलफेयर) भारतेंदु द्विवेदी ने बताया कि हमें अपनी डॉ. अनुराधा जैसी बहनों पर गर्व है। जो हम सभी भाइयों को तोहफे में हमारा जांबाज पुलिस अफसर लौटा रही हैं।
पुलिस मुख्यालय में अटैच आईपीएस कल्लूरी इन दिनों नई दिल्ली के करीब गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती हैं। शनिवार को डॉ. अनुराधा के खून की जांच होगी। 9 अगस्त को इस बाबत कमेटी बैठेगी, जो किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में निर्णय लेगी।
यदि सबकुछ सही रहा तो 13 अगस्त को किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरू होगी। 14 अगस्त को ऑपरेशन होगा। इसके बाद कल्लूरी करीब 3 महीने तक डॉक्टरों की निगरानी में रहेंगे।
आईजी कल्लूरी की दोनों किडनी खराब हो गई हैं। उन्हें जल्द से जल्द किडनी की जरूरत थी। ऐसे में जब उनकी बड़ी बहन डॉक्टर अनुराधा को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने तुरंत अपनी एक किडनी भाई को देने का फैसला कर लिया। संयोगवश मौका रक्षा बंधन का है और इसे बहन का जीवनदायी उपहार माना जा रहा है।
बहन अनुराधा ने कहा कि वह ऐसा करके ऑर्गन ट्रांसप्लांट को लेकर लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास कर रही हैं। ऐसे में भाई को किडनी की जरूरत पड़ने पर किसी और से इसके लिए कहने की बजाय उन्होंने अपनी किडनी देने का फैसला किया।
बस्तर के आईजी रहते कल्लूरी ने नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभिान चलाया था। उन पर मानवाधिकार हनन का आरोप भी लगा था। पिछले साल दिसंबर में उन्हें सीने में दर्द की शिकायत पर बस्तर से विशाखापटनम ले जाया गया था।
वहां अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने उनके हार्ट की सर्जरी की थी। तब बताया गया था कि उनके किडनी का भी उपचार किया गया है, हालांकि कहा जा रहा था कि वे अपोलो से पूरी तरह स्वस्थ होकर लौटे।
हाल ही में दोबारा समस्या शुरू होने पर कल्लूरी दिल्ली चले गए। वहां चेकअप कराने पर किडनी की समस्या सामने आई। इसके बाद डॉक्टरों ने किडनी ट्रांसप्लांट का निर्णय लिया है।
गुर्दे का प्रत्यारोपण करने वाले मेदांता अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक अलग ब्लड ग्रुप के लिए प्रत्यारोपण की प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण होती है। इस केस में यदि ब्लड ग्रुप एक ही रहा तो आसानी से प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पूरी होगी।
यदि ब्लड ग्रुप अलग-अलग हुआ, तो ऐसे में इसे संभव करने के लिए फेरेसिस प्लाज्मा की सहायता लेनी पड़ेगी। इसके तहत प्राप्तकर्ता के एंटी-बॉडी लेवल को कम करके इसे सफल बनाया जाएगा।
जो लोग घरों में बेटियों के पैदा होने पर दुखी होते हैं, डॉ. अनुराधा जैसी बेटियां उनके लिए मिसाल हैं। छत्तीसगढ़ की 2.55 करोड़ जनता की तो आईकॉन बन गई हैं अनुराधा दीदी, जिन्होंने उनको उनके जांबाज पुलिस अफसर की जिंदगी लौटाई है।