सबगुरु न्यूज उदयपुर। उदयपुर के स्वाधीनता सेनानी सुजानमल जैन ने रेलवे से 1982 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद जितना बचाया उसे स्वयं की 4600 वर्ग फीट जमीन पर मंदिर बनाकर समाज को समर्पित कर दिया। जब उनसे यह प्रश्न पूछा गया कि आजकल मंदिर के बजाय अनाथ बच्चों और गरीबों को दान देने की बात की जा रही है, तब उन्होंने कहा कि देखिये, धर्म बचेगा तो समाज में संस्कार और नैतिकता भी बचेगी।
स्वाधीनता आंदोलन पर विशेष बातचीत में वयोवृद्ध स्वाधीनता सेनानी ने अपनी बात को गहराई से समझाया। उन्होंने कहा कि आज देश इसी समस्या से जूझ रहा है कि चाहे बेरोजगार हो, आईएएस अफसर हो या राजनेता-मंत्री, सभी ने अपने नैतिक मूल्य खो दिए हैं।
नैतिक मूल्यों को व्यक्ति के आचरण का हिस्सा स्कूलों में घुट्टी घोलकर नहीं बनाया जा सकता। इसके लिए उसे अपने धर्म को समझना होगा। चाहे वह किसी भी पंथ का अनुगामी हो, यदि वह मंदिर जाएगा तो सत्संगति पाएगा।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि आज के जमाने में संत को पहचानना मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं है। ऐसे कई संतजन हैं जो आडम्बरों से दूर रहकर सिर्फ साधना व सत्संग के प्रति समर्पित हैं।
वयोवृद्ध स्वाधीनता सेनानी ने अपनी पीड़ा भी बयां कि आज पैसा बड़ा हो गया है, ऐसी आजादी की कल्पना उन्होंने नहीं की थी। वे तो चाहते थे कि हर व्यक्ति किसी के पराधीन न रहे, स्वतंत्र देश में उसे अपने और अपने परिवार के पालन-पोषण लायक रोजगार मिले, वह खुश रहे। लेकिन सब इसके उलट हो गया।