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बुझे मन में झांकता मानव

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बुझे मन में झांकता मानव

सबगुरु न्यूज। रात को चांद के चहेरे पर उदासी देख तारे कुछ ज्यादा झिलमाने लगे, लेकिन चांद उस गहरी अंधेरी खाईं में अपनी चन्द यादों की स्मृति में खो गया था। तारे कुछ समझ नहीं पाए कि चंचल मन की दुनिया का बादशाह इतना मायूस क्यो है। इतनें मे एक तारा टूटा और सितारों की दुनिया में रूदन मच गया। यह सब नजारा देखते देखते रात गुजर गई। दूसरे दिन चांद आसमान में नहीं था केवल तारे ही चमक रहे थे।

मैं कुछ सोचने लगा, इतनें में मेरे शरीर में बैठे मन को, शरीर में बैठे एक महा मानव ने झांकते हुए कहा कि हे अनुरागी ये शरीर तो वैसे ही नाशवान है तू उसे और क्यो मनोरोगी बना रहा है। तेरे कारण हजारों साल तक सुरक्षित रहने वाला ये शरीर चन्द वर्षो में ही निपट जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तेरे शरीर में जन्म के साथ ही एक महामानव बैठा रहता है जो सदा ही तुझे हर समय सत्य की अनुभूति करा उचित मार्ग पर चलने की सलाह देता है लेकिन हे वीर तू तो मन का योद्धा बना हुआ हैं और तू सदा ही मन के लिए काम करता है।

जब तू सफल हो जाता है तो अपने आप को देव मान कर दूसरों के साथ दानवी व्यवहार करनें लगता है और सम्पूर्ण धरा में अपने जीत के मिथ्या डंके बजवाता है।

गुनाहगारी डंकों के बीच जब तेरी हार होती है तो यह मन तुझे युद्ध के मैदान से हटाकर तुरंत दूसरा रूप धारण करा महिषासुरी माया का निर्माण कर सभी को मायावी युद्ध में फंसा देता है फिर तू अपने चयन को सफल मानकर, मन का गुलाम बन जाता है।

शरीर सें झांकता हुआ महा मानव फिर तुझे सचेत करता है कि तू अब भी समझ, अपने कार्य के चयन का अधिकार तू मन को मत दे, लेकिन मन शरीर पर इतना भारी पडता है कि वह फिर वही करता है जो मन चाहता है।

शरीर में बैठा महामानव शरीर व मन की गति विधियों की तरफ झांकता है और हर बार मुस्कुरा जाता है और वो मन को कहता है अच्छा भगवान् तेरी मर्जी, तू जाने तेरी मर्जी।

सौजन्य : भंवरलाल