मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को बैलगाड़ी रेस की इजाजत देने से बचने का निर्देश देते हुए कहा है कि पहले अधिकारी बैलगाड़ी रेस को लेकर दिशा-निर्देश तैयार करें।
बंबई उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर और न्यायाधीश एन. एम. जामदार की खंडपीठ ने कहा कि जब तक राज्य सरकार पशु क्रूरता अधिनियम-1960 में किए गए संशोधन के अनुरूप इस रेस के लिए नए दिशा-निर्देश तैयार नहीं करती, राज्य सरकार इस तरह की रेसों की इजाजत नहीं दे सकता।
सरकार की ओर से वकील अभिनंदन वाग्यानी ने अदालत को बताया कि दिशा-निर्देश का मसौदा तैयार कर लिया गया है और सरकार की वेबसाइट पर अपलोड कर उस पर जनता से उनकी आपत्तियां और राय मांगी गई है।
पुणे के कार्यकर्ता अजय मराठे की जनहित याचिका पर अदालत ने यह आदेश दिया। मराठे ने अदालत को गुरुवार को एक बैलगाड़ी रेस आयोजित होने की सूचना दी और उस पर रोक लगाने की मांग की।
याचिकाकर्ता का कहना है कि घोड़ों की तरह बैलों में दौड़ लगाने का प्राकृतिक गुण नहीं होता और ऐसा करने के लिए उन्हें मजबूर करना, बैलों को प्रताड़ित करने जैसा है।
महाराष्ट्र विधानसभा में मानसून सत्र के दौरान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना की गठबंधन सरकार ने बैलगाड़ी रेस को वैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए पशु क्रूरता अधिनियम में संशोधन विधेयक पेश किया, जिसे पारित कर दिया गया।
हालांकि इस विधेयक में कहा गया है कि बेहद मशहूर बैलगाड़ी रेस प्रतियोगिताओं ‘बैलगाड़ा शारयाट’, ‘छकड़ी’ और ‘शंकरपाल’ के आयोजकों को संबंधित जिलाधिकारी से पहले रेस के आयोजन की इजाजत लेनी होगी।
महाराष्ट्र के पश्चिमी और उत्तरी हिस्से में पारंपरिक तौर पर आयोजित होने वाली बैलगाड़ी रेस बेहद लोकप्रिय है, जिन पर 2014 में रोक लगा दी गई थी। तमिलनाडु में बैलों पर मनुष्यों द्वारा काबू पाने के पारंपरिक खेल ‘जल्लीकट्टू’ को वैधानिक मान्यता देने के लिए तमिलनाडु सरकार द्वारा नया कानून बनाने के बाद महाराष्ट्र ने भी बैलगाड़ी रेस से प्रतिबंध हटाने का फैसला किया।
बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर बुधवार को शिव सेना के शीरूर से सांसद शिवाजीराव अधालराव पाटिल ने कहा कि राज्य सरकार इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में अपील करने के विकल्प पर विचार करेगी।