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sarneshwar village handed over to rebari's for one night, history recalls
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इतिहास की अदभुत परम्परा निभाई, 700 साल पुराने वचन के लिए एक दिन का राज सौंपा

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इतिहास की अदभुत परम्परा निभाई, 700 साल पुराने वचन के लिए एक दिन का राज सौंपा
sarneshwar temple premises
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सबगुरु न्यूज-सिरोही। रियासत काल में करीब सात सौ साल पहले की परम्परा को निभाते हुए देवझूलनी एकादशी को सिरोही शहर के निकटवर्ती सारणेश्वर गांव को शनिवार रात को रेबारी समुदाय के लोगों को सौंपा गया है। इस दिन इस गांव में स्थित सारणेश्वर महादेव मंदिर के किलेनुमा परिसर में अन्य समुदाय का एक भी व्यक्ति नहीं घुसता और पूरी रात यहां पर रेबारी समुदाय के लोगों का मेला लगता है। यह मेला सारणेश्वर मेले के रूप में प्रसिद्ध है।

हर देवझूलनी एकादशी को प्रतिवर्ष सिरोही का पूर्व राजघराना अपने परिवार की ओर से रेबारी समुदाय को दिए गए वचन को निभाता आ रहा है। लोकतंत्र में राजतंत्र के किए हुए वादे को निभाने की परम्परा शायद ही कहीं देखने को मिले। सिरोही वासी भी इस परम्परा को निभाते आ रहे हैं।

1298 में सिरोही के तत्कालीन महाराव विजयराज की सारणेश्वर मंदिर के शिवलिंग को अलाउद्दीन खिलजी की सेना से छीनने से नाराज खिलजी ने सिरोही पर भारी सेना के साथ हमला कर दिया। इस हमले में सिरोही राजपरिवार को साथ आसपास के रेबारी समुदाय के लोगों ने दिया और खिलजी को हराया गया।

देवझूलनी एकादशी के दिन यह युद्ध जीता गया था इसलिए महाराव में सिरोही से तीन किलोमीटर दूर स्थित सारणेश्वर गांव का एक दिन का शासन रेबारी समुदाय को सौंपा। तब से लगातार यह परम्परा निभाई जा रही है।

परम्परागत वेशभूषा में आते हैं रेबारी

यह रेबारी समाज का एक ऐसा मेला है जो उनके पूर्वजों की यशोगाथा को ही नहीं वरन राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण का भी प्रतीक है। ऐसे में इस पारम्परिक मेले में रेबारी समुदाय के लोग भी पूरी परम्परा निभाते हैं। पुरूष और महिलाएं परम्परागत वेशभूषा में आते हैं।

कोई व्यक्ति कितने भी उंचे पद पर क्यों न हो इस दिन मेला परिसर में घुसने के लिए उसे अपनी पारम्परिक वेशभूषा ही पहननी होगी। इसके बिना वह मेले में नहीं घुस सकता। सफेदे धोती, सफेद काचली, लाल साफा और हाथ में लट्ठ रेबारी समुदाय की पारंपरिक वेशभूषा है। शनिवार को भी अधिकांश युवक इसी वेशभूषा में नजर आए।

साफे की जगह दुपट्टे ने भी ले ली है। एक दशक पहले तक इस मेले में परम्परा का जबरदस्त रगं बिखरता था, लेकिन शनै-शनै वेशभूषा को लेकर युवा वर्ग शायद कुछ सकुचाता नजर आ रहा है। शनिवार को कई युवकों ने काचली और धोती तो पहनी थी, लेकिन सिर पर लाल साफा और हाथ में लट्ठ, जिसे स्थानीय भाषा में डांग कहा जाता है, नहीं नजर आया। लाल साफे की जगह गले में एक दुपट्टा जरूर नजर आया।

पूरी रात होती है भजन संध्या और दूसरे दिन सामाजिक चर्चा

सारणेश्वर मंदिर में जब परिसर रेबारी समाज के लोगों के सुपुर्द किया जाता है तो समाज बंधु यहां पूरी रात सारणेश्वर महादेव के भजन करते हैं। दूसरे दिन सामाजिक चर्चा होती है। इसमें पाली, जालोर और सिरोही से रेबारी समाज के प्रमुख लोगों समेत संपूर्ण समाज हिस्सा लेता है।