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student union election result will fix the future of state minister dewasi
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मंत्री ओटाराम देवासी समेत कई भाजपा नेताओं के भविष्य का फैसला आज!

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मंत्री ओटाराम देवासी समेत कई भाजपा नेताओं के भविष्य का फैसला आज!
state minister otaram dewasi driving motor cycle without helmate during tiranga yatra in sirohi
state minister otaram dewasi took part in tiranga yatra on the day of inaugration of jignasha rawal’s election office and jignasha rawal ride on the scooty behind the dewasi.

सबगुरु न्यूज-सिरोही। सोच यह रहे होंगे कि आखिर आज मंत्री ओटाराम देवासी के भविष्य का फैसला कैसे हो सकता है। तो आज सिरोही राजकीय महाविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव का परिणाम आने वाला है। इसमें एबीवीपी हारे तो भी आरएसएस और एबीवीपी प्रत्याशी के वर्ग के विरोध का ठीकरा मंत्री ओटाराम देवासी समेत तीन नेताओं तथा कथित समाजसेवियों पर फूटने वाला है और यदि जीते तो भी। यह चुनाव चार नेताओं और नेतागिरी के शौकीन समाजसेवियों के भविष्य का फैसला करेगा।

दरअसल, सिरोही राजकीय महाविद्यालय में 28 अगस्त को हुए छात्रसंघ चुनावों के लिए एबीवीपी ने जिग्नाशा रावल को अपना प्रतिनिधि बनाया था। इसके बाद जिग्नाशा के सामने ही एबीवीपी के तीन केंडीडेट खडे हो गए। इसमें आरोप यह लगने लगा कि इन प्रत्याशियों में से सुरेश देवासी को खडेा करने के पीछे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मंत्री समेत सिरोही के तीन नेताओं और कथित समाजसेवियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

कारण यह था कि इसे सहयोग करने वाले जो पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष है उन्हें उठाने और उनकी सिफारिश में पिछले तीन सालों में इन नेताओं की भूमिका खुलकर सामने आती रही है। इतना ही नहीं इनके जीत के जश्न में तो यह लोग खुलकर सामने आए थे।

एबीवीपी के बागी सुरेश देवासी का सहयोग करने वालों पर उनके चुनाव के वक्त में भाजपा के इन जनप्रतिनिधियों और नेताओं की भूमिका होने से कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि एबीवीपी के से बगावत करने वालों को सपोर्ट करने में इन नेताओं का हाथ नही हो सकता है। एबीवीपी से बगावत मतलब है सीधे आरएसएस को चुनौती। यदि यह आरोप सही हैं तो एक तरह से भाजपा के इन नेताओं ने दंभ में आकर आरएसएस को चुनौति दे दी है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि आरएसएस की मुखालफत करने का ठीकरा इन नेताओं पर फूटे इसके लिए पूरी रणनीति के तहत इनके विरोधी खेमे ने जमकर एबीवीपी समर्थित प्रत्याशी का न सिर्फ समर्थन किया बल्कि जैसा कि सूत्रों ने बताया उसके अनुसार इन नेताओं और कथित समाजसेवियों द्वारा आरएसएस की मुखालफत किए जाने का संदेश निरंतर आरएसएस के संभाग और प्रदेश नेतृत्व को भिजवाते रहे। इन आरोपों को बल खुद ओटाराम देवासी ने भी एबीवीपी के छात्रसंघ चुनाव कार्यालय के उद्घाटन में नहीं जाकर दे दिया।

आरोप यह भी लग रहा है कि जिस दिन सिरोही नगर ब्लाॅक मंडल की ओर से सिरोही में तिरंगा रैली निकाली गई थी, उसी दिन एबीवीपी समर्थित प्रत्याशी जिग्नाशा रावल के छात्रसंघ कार्यालय का उद्घाटन था। इस रैली में ओटाराम देवासी भी शामिल हुए थे और जिग्नाशा रावल भी। कथित रूप से रैली के बाद हुई बैठक में जिग्नाशा व आरएसएस और एबीवीपी के समर्थित अन्य लोगों ने भी ओटराम देवासी से कार्यालय उद्घाटन करने का अनुरोध किया।

देवासी इसके लिए उनके सामने तैयार भी हो गए। इसके बाद जैसे ही सभी लोग उद्घाटन के लिए निकले तो देवासी के वाहन का रूख छात्रसंघ चुनाव कार्यालय की दिशा से अलग मुड गया। गुस्साए एबीवीपी कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों का यह आरोप है कि उनके पास कोई फोन आया और उसके बाद ऐसा किया गया।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस्के लिये आरोप ये लग रहा है कि पिछले तीन साल में सिरोही महाविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में खडे प्रत्याशी चूंकि ओटाराम देवासी और अन्य भाजपा नेताओ के वर्ग के थे इसलिए वह अधिकांशतः उनके कार्यालयों के उद्घाटन मे जाते रहे और इस बार उनके वर्ग के छात्र को एबीवीपी का प्रत्याशी नहीं बनाए जाने से उन्होंने अंतिम समय में ऐसी पलटी मारी।

दरअसल, जिस वर्ग से जिग्नाशा रावल आती है उनके भी सिरोही विधानसभा में 20 हजार से ज्यादा वोट हैं। छात्रसंघ चुनाव से पूर्व सुरेश देवासी को ही एबीवीपी प्रत्याशी बनाने का प्रयास करने की कथित कोशिश के कारण एक भाजपा कार्यकर्ता ने गोपालन मंत्री के लिये यह तक कह दिया था कि यदि जिग्नाशा एबीवीपी प्रत्याशी नहीं बनती तो देवासी को भी वह 2018 में अपना विधायक प्रत्याशी मानने से इनकार करते हैं। भाजपा के मतदाताओं में महत्वपूर्ण भाग इस वर्ग का भी रहता है।

आरोप यह भी लगा कि पूजा रावल को आर्थिक सहयोग और सुरेश देवासी की जीत में बाधक बनने वाले कृष्णा देवासी को बैठाने के प्रयास करने में ऐसे नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऐसे में विशेषकर आज आने वाले छात्रसंघ चुनावों के परिणाम में एबीवीपी हारे या जीते मंत्री ओटाराम देवासी समेत एबीवीपी के विरोध करने में कथित रूप से शामिल चार लोगों का हारना तय है।

एबीवीपी हारती है तो भी आरएसएस और भाजपा का प्रमुख वोट बैंक जिग्नाशा के वर्ग वाले लोगों की नाराजी झेलनी होगी और जीतती है तो भी। प्रदेश में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार ने अब तक राज्य के मतदाताओं में सुशासन और सुराज के विपरीत व्यवस्था बनाकर भाजपा के प्रति नीरसता पैदा की है उससे आने वाले चुनावों में संघ की भूमिका कुछ और ज्यादा व्यापक होगी, इसमें कोई दो राय नहीं है। ऐसे में इन नेताओं की आरएसएस से अनुषांगिक संगठन के विरोध में भूमिका होने का आरोप लगना किसी तरह से लाभप्रद तो नहीं है।