सबगुरु न्यूज। अंहकार के आभूषण पहनकर व्यक्ति संस्कार व संस्कृति को ठोकर मार जब आगे निकलने लगता हैं तो काल के पंजे का एक चांटा पडता है। फिर भी वह रावण की तरह अपने कुनबे का नाश कराकर भी भी चुप नहीं बैठता।
कुछ ऐसे ठुकराए हुए और ठोकर खाए विषेले सांपों की फौज बना काल को ललकारता है और चारों तरफ से उसे घेरने के लिए फुफकारने लगता है।
इतने में एक तूफान आता है, वह अंहकार रूपी उन सांपों को उड़ा कर ले जाता है और इतेफाक से उन्हें श्मशान में जलती चिता में डाल देता है। जलती चिता उन चारों सांपों को उनके अंहकार के साथ उन्हें भी जलाकर भस्म कर देती है।
सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग इन चारों युगों के अहंकारी सांपों को हर युग में जलना पडता है, फिर भी वो अपनी दुष्टता नहीं छोड़ते। ईष्र्या, जलन, विरोध और बदला लेने की भावना ही अंहकार के पतन का कारण बन जाती है।
चाहे कोई कितना भी बलशाली क्यों ना हो, श्रद्धा और आस्था जहा होतीं है वहां भगवान की तरह इंसान पूजे जाते हैं और जहां कपट, लोभ-लालच के सौदे होते हैं वहां शैतान ही पूजे जाते हैं।इस
शैतानी दुनिया के लोग सुधारक का जामा पहन अपनी शराफत दिखाते हैं तथा अपना हित साध कर, साधुओं को आंखें दिखाकर महापुरूषों के आइने दिखाते हैं।
इन छद्म वेषधारी की संगत से भगवान तो क्या शैतान भी पनाह मांगने लग जाते हैं, शैतान भी इनके जर्जर अंत के लिए इनको लात मार देते हैं। रावण की तरह अपने कुनबे का भी नाश ये अपने नाश के साथ करवा लेते हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू इन नुगरे व्यक्तियों की संगत मत कर वरना तेरे लांछन लग जाएंगे क्योंकि एक नुगरे व्यक्ति की पीठ पर लाखों पापियों का भार होता है। इन्हें तू सोने के जेवर आभूषण की तरह धारण मत कर क्योंकि यह पीतल भी नहीं है। ये अंहकार के भांडे शमशान घाट में रखने लायक भी नहीं है। अपने कर्म में लग ओर जीवन का लुत्फ़ उठा।
सौजन्य : भंवरलाल