नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि अब समय आ गया है कि शिक्षा को व्यावहारिक बनाया जाए। उन्होंने कहा कि शिक्षा ऐसी हो, जिससे सबका कल्याण हो सके।
भागवत ने शनिवार को पुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा तैयार की गए पांच संदर्भ ग्रंथों का लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिससे सबका कल्याण हो। शांति शांत प्रवृत्ति की हो, ऐसी शिक्षा से ही जगत कल्याण संभव है।
शिक्षा का संबंध व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र तीनों से है। शिक्षा का आधार ही राष्ट्रीयता है। प्रत्येक राष्ट्र का स्वभाव उसे अपने जन्म के साथ ही प्राप्त होता है। राष्ट्र का स्वभाव ही राष्ट्र की आत्मा है, राष्ट्र की चिति है।
भागवत ने कहा कि आज देश में सभी शिक्षाविदों सहित आम आदमी में भी एक मत है कि परिवर्तन की आवश्यकता है, जिसे करने के लिए सबको आगे आना होगा। जो आदमी भूत के विचारों को छोड़कर जीता है, उसका भविष्य ठीक नहीं होता। लेकिन जो व्यक्ति भूत के विचारों को समझकर आगे बढ़ता है, उसका भविष्य अच्छा होता है।
उन्होंने कहा कि कोई भी ग्रंथ अंतिम विषय या विचार नहीं होता है। लोकार्पित पुस्तकों के बारे पुनरुत्थान विद्यापीठ के कुलपति इंदुमति काटदरे ने कहा कि इन ग्रंथों के लेखन में विद्यापीठ की भूमिका वर्तमान शिक्षा को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त कर भारतीय शिक्षा की पुनप्र्रतिष्ठा करने की है।
आज पश्चिमी सोच से प्रभावित शिक्षा के स्थान पर भारतीय शिक्षा की पुनप्र्रतिष्ठा के लिए विद्यापीठ ने योजना तैयार की। इस योजना के चलते देश की शिक्षा भारतीय तो बनेगी ही साथ में समूचा विश्व इससे लाभान्वित होगा।