प्रशान्त झा
सबगुरु न्यूज। हिन्द महासागर में चीन की दखलन्दाजी निरंतर बढती जा रही है। चीन दक्षिण चीन सागर में कृतिम द्वीप बना कर नौसैनिक बेस स्थापित कर पूरे क्षेत्र पर अपना अधिकार जता चुका है जिस से उस क्षेत्र में वह व्यापार और नौवहन गतिविधियों पर न केवल नजर रख सकता है बल्कि नियंत्रण और मनमर्जी भी करना चाहता है।
वियतनाम में तेल एवं गैस की खोज में लगी भारतीय कम्पनीयों को कई बार वह चेतावनी भी दे चुका है। इस क्षेत्र में अमरीकी, जापानी, आस्ट्रेलियाई व अन्य देशों की व्यापारिक
गतिविधियों पर भी चीन एतराज जता चुका है।
अब चीनी नौसैना ने हिन्द महासागर में भी अपनी गतिविधियां तेजी से फैलानी शुरू कर दी हैं, उसके युद्धपोत खाडी देशों, अफ्रीका, अरब सागर तक में गश्त करने लगे हैं। पिछले कुछ वर्षों में चीनी पनडुब्बीयाँ, अण्डमान निकोबार द्धीप समूह के नजदीक, श्रीलंका, पाकिस्तान और बाँग्लादेश में कई बार देखी गई हैं। चीनी नौसैना की इस क्षेत्र में बढती गतिविधियाँ भारत के लिये चिन्ता का विषय है।
चीन के पास अमरीका का बाद दूसरा सबसे बडा पनडुब्बी बेडा है और उसके पास 10 परमाणु पनडुब्बीयों सहित 60 से अधिक पनडुब्बीयां हैं।
चीन की इस क्षेत्र में बढती चुनौती और दखलंदाजी से निपटने के लिए भारतीय नौसैना ने भी कमर कसनी शुरू कर दी है। भारत के पास वर्तमान में 13 पुरानी पड चुकी परम्परागत पनडुब्बीयां और दो परमाणु पनडुब्बीयां हैं जो चीन की चुनौती का मुकाबला करने के लिए नाकाफी हैं। भारत इस कमी को पूरा करने के भरसक प्रयास कर रहा है।
वह तेजी से प्रोजेक्ट 75 पर काम करते हुए फ्रान्स की तकनीकी मदद से 6 स्कारपियन श्रेणी की परम्परागत डीजल इलैक्ट्रिक पनडुब्बीयों का निर्माण कर रहा है। स्कारपियन श्रेणी की पहली पनडुब्बी कलवरी अपने समुद्री परीक्षण पूर्ण कर चुकी है जिसे एक माह के भीतर ही भारतीय नौसैना में शामिल किया जा सकता है।
वीआईपी हैलीकाप्टर खरीद घोटाले में फंसी यूरोप की कम्पनी फिनेमैकेनिका जो इस पनडुब्बी के लिए ’ब्लैक शार्क’ नामक मुख्य टारपीडो बनाती है, के प्रतिबंधित किए जाने के कारण अब स्वीडन की साब सहित 5 अन्य कम्पनीयों में से इन पनडुब्बियों के लिए मुख्य भारी टारपीडो शीघ्र खरीदे जाने पर विचार चल रहा है, जिसके प्राप्त होने से इन घातक पनडुब्बीयों की मारक क्षमता में भारी इजाफा होगा और ये इस क्षेत्र की आधुनिकतम पनडुब्बी बन जाएंगी।
पानी के भीतर से अपनी द्वितीय प्रहार प्रहार क्षमता में इजाफा करने के उद्देश्य से भारत अपनी दूसरी परमाणु पनडुब्बी ’अरिदमन’ का भी एक माह के भीतर जलावतरण करने की योजना बना रहा है। अरिदमन न केवल अपनी पूर्ववर्ती आईएनएस अरिहन्त से आकार में बडी है बल्कि इसकी हथियार ले जाने की क्षमता और न्यूक्लियर रिएक्टर भी बडा और अधिक शक्तिशाली है।
यह अपने आठ लान्च टयूब्स में 24 स्वदेशी ’के-15’ सागरिका अथवा 8 ’के-4’ मिसाईलें ले जा सकती है जिनकी मारक क्षमता क्रमशः 750 व 3500 किलोमीटर है और ये परमाणु मुखास्त्र ले जाने में भी सक्षम हैं। साथ ही इनकी कमी को पूरा करने के लिए भारत रूस से एक और परमाणु पनडुब्बी लीज पर लिए जाने की योजना पर विचार कर रहा है, अकूला श्रेणी की यह पनडुब्बी भारतीय नौसेना में शामिल होने पर ’आई.एन.एस. चक्र-तृतीय’ के नाम से जानी जाएगी।
भारत के पास मौजूदा परम्परागत रूसी किलो श्रेणी व जर्मन शिशुमार श्रेणी की डीजल इलैक्ट्रिक पनडुब्बीयाँ तीस वर्ष से भी अधिक पुरानी हैं जो सामान्यतः अपना जीवनकाल पूर्ण कर चुकी हैं। भारत इन्हें ’प्रोजेक्ट 75’ के अन्तर्गत स्कारपियन श्रेणी की पनडुब्बीयों से बदलने की योजना पर काम कर रहा है जो तय समय से आठ वर्ष की देरी से चल रही है और इस प्रोजेक्ट के माध्यम से केवल 6 पनडुब्बीयां ही बदली जा सकेंगी। इसके चलते भारत पुरानी पड चुकी रूसी किलो श्रेणी की पनडुब्बीयों की भी रूस में मध्यम अवधी रिफिटिंग करवा रहा है जिससे इनके जीवन काल को 10 से 15 वर्ष और बढाया जा सके और इन्हें आधुनिक व उन्नत उपकरणों से लैस किया जा सके।
वर्तमान में किलो श्रेणी की दो पनडुब्बीयां रूस में रिफिटिंग के लिए भेजी गई हैं। परन्तु ये प्रयास भी भारतीय नौसैना के वर्ष 2030 तक 24 पनडुब्बीयों का लक्ष्य हासिल करने में नाकाफी हैं जिसके चलते भारत 6 और नवीनतम अत्याधुनिक परम्परागत पनडुब्बीयों का विदेशी निर्माताओं के सहयोग से भारत में ही निर्माण करने की योजना प्रोजेक्ट ’पी-75आई’ पर भी वैश्विक साझीदार की तलाश मे लगा हुआ है जो अगले 10 वर्षों में भारतीय निर्माताओं के साथ मिलकर इन पनडुब्बीयों का निर्माण करेंगे। जो चीन के भारी भरकम पनडुब्बी बेडे का हिन्द
महासागर क्षेत्र में मुकाबला करने में उपयोगी व शक्ति संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण साबित होंगी।
हालांकि चीन के पास फिर भी भारत से लगभग तिगुना बडा पनडुब्बी बेडा होगा पर भारत ने चीनी पनडुब्बीयों से निपटने के लिए अमरीका से आधुनिकतम आठ पनडुब्बी टोही व विधवन्सक विमान ’पी-8 आई’ विमान हासिल कर लिए हैं और चार अतिरिक्त विमानों की आपूर्ति के लिए आर्डर दे दिया है।
ये विमान विश्व में समुद्र की गहराईयों में से पनडुब्बीयों को खोज कर उन्हे नष्ट करने वाले श्रेष्ठतम विमान के रूप में विख्यात हैं, जो चीनी पनडुब्बीयों के लिए काल साबित होंगे। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा की भारतीय नौसेना चीन की चालों के खिलाफ कमर कसती
नजर आ रही है, बस इस सब में लगने वाला लम्बा समय हमारे लिए चुनौतीपूर्ण होगा।