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समाधि का दिया गुल ना करना  - Sabguru News
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समाधि का दिया गुल ना करना 

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समाधि का दिया गुल ना करना 

सबगुरु न्यूज। हे! मुसाफिर, इस दुनिया में बस एक बार तेरा आना होगा। तू जीते जी अपनी यादों की समाधि पर ऐसा दिय़ा जलाकर जाना कि वह कभी गुल ना हो सके, दूसरे राहगीर को भी उसकी रोशनी में तेरी समाधि दिखलाई पडे और वहां लिखा हुआ मिले कि हे मुसाफिर बस यही इस एक अटल सत्य है।

सदियां बीत गईं, जमाने बदल गए, सब कुछ बदल गया। सभ्यता और संस्कृतियां खूब फूली फली, लाखों विद्वान और उनकीं रचनाएं, जीवन के हर दर्शन, दर्शन शास्त्री, जीने की कला सीखाने वाले, प्रकृति के रहस्य खोजने वाले। कई दुनिया बनाने वाले और कई मिटाने वाले भी इसी मिट्टी में मिल गए।

अब तक के सृष्टि इतिहास में कई विचारधाराओं को हितैषी समझ स्वीकार लिया गया तो किसी को अंधविश्वास मान नकार दिया गया। समाज की विषमताओं ने जाति, लिंग, वर्ग भेद के आधार पर इन सब पर प्रहार कर मानव मात्र को क्या बना दिया। उन्हें अपनी इचछानुसार सम्मानित और बदनाम कर शमशान घाट पर चांडाल बना दिया।

यह सब भी काल के गाल में समा जाने के कारण कुछ भी किसी को समझ नहीं आया। कभी भूतों की तो कभी भगवान की, कहीं आत्मा की तो कहीं वास्तविकता को सत्य बनाकर अपनी रोटियां सेंक ली। किसी को भूख से मरने पर उतारू कर दिया।

हे! राहगीर ये दुनिया तनिक विश्राम के लिए है। ऊपर बैठा बाजीगर, बाज़ी चला कर इसे खिला रहा है। जिसके जी में जो चाहे वेसा खेलों लेकिन पांसेे वह ही फेंकता है और फल भी वही देता है।

इन सब के बाद भी लोकाचार में जीने के लिए तथा अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए जमीनी तौर पर जीवन को ग्लेमर की भूमिका अदा कराकर विजयी अभियान की ओर निकला मानव येन-केन-प्रकारेण अपने को विजेता घोषित करवा लेता है। फिर भी हे श्रेष्ठ मानव, तेरे मन में जो भी हो वह सब कुछ कर डाल क्योंकि तू जमीनी हकीकत का बादशाह है लेकिन आसमानी हकीकत से दूर है।

अंत में मेरा निवेदन है कि तू अपनी चन्द यादों की स्मृतियों की तस्वीर बनाकर छोड़ दे जिसमें एक मानव को मानव समझने के दर्शन की झांकी हो और लोक कल्याण का तेरे द्वारा बनाया एक नक्शा हो। तेरे जाने के बाद तेरी समाधि पर यही चिराग जला रहेगा। बस इसी से तेरा चिराग गुल नहीं होगा।

सौजन्य :भंवरलाल