सबगुरु न्यूज। विश्वास का गला जब काट दिया जाता हैं तो उसे दगा कहते हैं और वह दगेबाजों का ब्रह्मास्त्र होता है। दगेबाज इस ब्रह्मास्त्र को बड़ी सूझ बूझ के साथ चला कर अपने हितैषी का अंत कर देता है।
कितना बेरहम धोखा है जो बाड बनकर खेत को खा जाता है। गुप्त शत्रु बन शत्रुता को भी बदनाम कर देता है क्योंकि शत्रु की शत्रुता का भी अपना एक मोरल होता है।
विश्वास के दर्पण पर पडा ये दगे का पत्थर, दर्पण को टुकडे टुकडे में बिखेर देता है और हर दर्पण के टुकड़े पर दगेबाज के हजारों चेहरे बन जाते हैं और जीवन के दर्शन मे विश्वास शब्द आत्महत्या कर लेता है।
विश्वास की डोर पर ही संबंधों की आधारशिला रखी जाती है और जब ये आधार ही दगेबाज बन जाते हैं तो कोई इमारत कितनी भी बुलन्द क्यो न हो वह भरभरा कर गिर जाती है।
कश्यप ऋषि की दो पत्नियों मे आपस में भारी बैर था जबकि वे दोनों ही बहनें थीं और दक्ष प्रजापति की पुत्रियां थी। अदिति व दीति उनके नाम थे। अदिति के देव और दिति के दानव पैदा हुए। अदिति ने इंद्र को जन्म दिया तब दीति के गर्भ में भी संतान थी। यह देख अदिति को ईर्ष्या हुई कि दीति का पुत्र मेरी संतान से ज्यादा बलवान न हो जाए।
ऐसा भाव मन में आने पर उसने अपने पुत्र को अपनी बहन दीति के साथ छल करके उसका गर्भ गिरवा दिया। पहली मानवी सृष्टि जो दक्ष प्रजापति ने उत्पन्न की बस वहीं से दगा शुरू हो गया और घर परिवार तथा समाज में दिनों दिन बढ़ कर विश्वासघात सर्वत्र फैल गया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू खुद को ही बुलन्द रख ओर दगा रूपी प्रदूषण को पनपने से पहले ही तेरे धरातल पर गुलाब नहीं, कांटों के पौधे लगा तो हर कोई तेरे घर में संभल कर प्रवेश करे और दगा देने से पहले ही वो कांप जाए। ये कांटे दगे का दर्पण तोड़ देंगे और दगेबाज के हजारों चहेरे हर टूटे हुए कांच मे नजर आएंगे।
सौजन्य : भंवरलाल