भोपाल। आज परिवार टूट रहे हैं, व्यक्ति टूट रहा है, अवसाद महामारी के रूप में फैल रहा है। इसकी कोई चिकित्सा है तो वो है जीवन मूल्यों को वापस लौटाना। जब तक संस्कृति नहीं आयेगी, जीवन मूल्य नहीं आयेंगे। संवेदना में सारे जीवन मूल्य परिभाषित है।
अखिल विश्व गायत्री परिवार के निदेशक डॉ. प्रणव पण्ड्या ने यह बात राजधानी भोपाल में “मूल्य आधारित जीवन” पर अन्तर्राष्ट्रीय परिसंवाद के समापन सत्र में कही।
सत्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे। परिसंवाद का आयोजन संस्कृति विभाग, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा किया गया था।
डॉ. पण्ड्या ने कहा कि आज सारा समाज आस्था के संकट से ग्रसित है। वैश्वीकरण और औद्योगिकीरण के दौर में आदमी मशीन बन गया और उसमें मूल्य नहीं है। शरीर में मूल्य नहीं है तो प्राण नहीं है। गीता में कहा गया है कि ईश्वर को तत्व से जानना सबसे बड़ा जीवन मूल्य है। ईश्वर आदर्शों का और सद्प्रवृत्तियों का समूह है। सबसे बड़ा जीवन मूल्य सद्प्रवृत्ति है।
आध्यात्मिकता जीवन का महत्वपूर्ण मूल्य है। वर्तमान परिस्थितियों में अपने मूल्य को समझना और विश्वास करना गुण है। व्यक्ति के अंदर जीवन मूल्य सदगुणों से जागेंगे। उन्होंने कहा कि विश्व में कहीं भी संस्कृति नहीं सभ्यताएँ हैं। भारत में संस्कृति है। संस्कृति अंतरजगत में सद्गुणों की खेती है। परिवार को लेकर जीवन में आदर्शों को उतारना होगा। बच्चों को प्यार और आत्मीयता देकर मानव मूल्यों को समझाना होगा।
संस्कृति आध्यात्म की समानार्थी है। इसे जीवन में उतारना मानव मूल्यों को जीवन में उतारना है। कष्ट सहकर आदर्शवादी जीवन जीना तप है और तप करते हुए प्रसन्न रहने से पुण्य मिलता है। संस्कारयुक्त काया को जीवन मूल्य देना हमारा लक्ष्य होना चाहिये। स्वामी विवेकानंद ने कहा था बनो और बनाओ।
अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। विचारों की शक्ति जीवन मूल्य बनाती है। स्वार्थ को उदारता और अहम को सहिष्णुता में बदलकर हम सही अर्थों में जीवन मूल्यों को स्वीकार करते हैं। जीवन मूल्यों में गिरावट संवेदना की कमी से आयी है। संवेदना में सारे जीवन मूल्य परिभाषित है।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि राजनीति और प्रशासन सहित हर क्षेत्र में जीवन मूल्यों की जरूरत है। नेतृत्व वह है जो जनता को सही दिशा में ले जाये। राज्य सरकार समाज के साथ मिलकर सिंहस्थ की पुरातन परम्परा का पूरी तरह से निर्वाह करेगी। परम्परागत कार्यक्रमों के साथ वैचारिक अभियान भी चलेगा।
मध्यप्रदेश में जनता के अलग-अलग वर्गों को मिलाकर उनके विचार जानकर योजनाएँ बनायी गयी हैं। उन्होंने कहा कि एक विचार पूरा जीवन बदल देता है। व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा बन जाता है। हम केवल शरीर नहीं मन, बुद्धि और आत्मा भी है। दुनिया को बदलने के लिये सरकार को समाज के साथ जुड़ना होगा। इस परिसंवाद के विचारों के निष्कर्षों में से जो क्रियान्वित किये जा सकते हैं क्रियान्वित किये जायेंगे।
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. शर्मा ने कहा कि मूल्य आधारित जीवन समाज में कैसे आये इस पर विचार करना होगा। इसकी शुरूआत अपने आप से करना होगी। संस्कारयुक्त शिक्षा ऐसी होना चाहिये जो ऐसा समाज बनाये जिसमें लोग बिना विचार के मूल्य आधारित जीवन जीने लगे।
उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश से वैचारिक क्रांति की नई शुरूआत हुई है। शिक्षा शास्त्री अनिरूद्ध देशपांडे ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से मूल्य व्यवस्था को सुदृढ़ बना सकते हैं। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के अतुल कोठारी ने कहा कि परिसंवाद में दस विषय पर चर्चा हुई है, जिसमें से हर विषय पर घोषणा-पत्र तैयार किया जायेगा।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के. कुठियाला ने परिसंवाद में हुए विचार-विमर्श और सुझावों की जानकारी दी। अमेरिका से आये प्रोफेसर बलराम ने परिसंवाद के संबंध में अपने अनुभव बताये।
कार्यक्रम में सिंहस्थ पर आयोजित राष्ट्रीय आलेख प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। इसमें भूमिका कपूर, स्वप्न प्रधान, रवि कुमार अग्रहरि, कोमल प्रसाद, रवीन्द्र कुमार, शुभेन्द्र सत्यदेव, नीता चावड़ा और अपूर्वा शर्मा शामिल है। कार्यक्रम में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा, पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, मुख्यमंत्री की पत्नी साधना सिंह भी उपस्थित थे। आभार प्रदर्शन संस्कृति राज्य मंत्री सुरेन्द्र पटवा ने तथा स्वागत भाषण प्रमुख सचिव संस्कृति मनोज श्रीवास्तव ने दिया।