सबगुरु न्यूज। नवरात्रि की बेला परमात्मा को प्राप्त करने की घड़ी है। प्रकृति का स्वामी स्वयं अपनी प्रकृति के सजीव और निर्जीव सभी में एक नई ऊर्जा का संचार करता है और उसका प्रभाव समस्त सृष्टि पर पडता है। सगुण और निर्गुण,आस्तिक या नास्तिक ये सब बाते गौण हैं।
कारण सबसे पहले परमात्मा ने सृष्टि मे जो कुछ भी उत्पादन किया है सभी में अपने ही गुण डाले हैं। अतः ये बेला अपने अपने विश्वास को मजबूत बनाती है। पौराणिक काल के इतिहास की हम जब झलक देखते हैं तो हम पाते हैं कि सब सशक्त देव, दानव या मानव स्वर्ग लोक पर कब्जा कर स्वर्ग का सुख भोगना चाहते हैं।
पूर्व कालिक इतिहास में विशेष कर देव और दानव ही इनमें मुख्य रूप से थे। देव व दानव एक ही पिता की संतानें थी लेकिन माता अलग अलग थीं। देवों को विशेष कर त्रिदेवों का संरक्षण प्राप्त था जबकि दानव अपनी कठोर साधना व बलबूते के आधार पर देवताओं संग युद्ध करते थे।
दानवों ने कई वर्षो तक स्वर्ग पर शासन किया। राज करने के लिए देव ओर दानव हर तरह की कूटनीति, राजनीति, छल कपट, धोखा इन सभी का सहारा लेते थे।
एक बार अरूणासुर दैत्य ने हिमालय में जाकर ब्रह्मा की कड़ी साधना की। तब ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि तुम्हारी मृत्यु स्त्री पुरूष, जीव जन्तु तथा चौपाये से भी नहीं होगी तथा देवताओं से ज्यादा बल तुझमे होगा। वरदान पाते ही वह तमाम दैत्यों का राजा बन गया और आक्रमण कर स्वर्ग जीत लिया।
देव आदि सभी त्रिदेवों के पास गए और उनकी सलाह से महादेवी की स्तुति की। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दिया तथा अरूणा सुर को मारने के लिए अपने शरीर के चारों असंख्य भ्रमर लिपटा लिए। समग्र अंतरिक्ष में भी भ्रमर फैला दिए तथा सीधे ही दैत्यों पर आक्रमण कर अरूणासुर सहित सभी दैत्यों को मार डाला। यह सब इतना जल्दी से हुआ कि कोई दैत्य संभल भी नहीं पाए और सभी काल के गाल मे समा गए।
यह अजीब नजारा देख सभी देवता तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश भगवती भ्रमरों को धारण करने वाली भ्रामरी देवी की स्तुति करने लगे, तब भ्रामरी देवी सभी को आशीर्वाद दे अदृश्य हो गई।करूणामयी मां कि इस कथा को जो भी स्मरण करता है तथा इस रूप में पूजता है उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। यह सब धार्मिक मान्यताएं हैं। शारदीय नवरात्रा की इस पावन बेला पर भगवती के काल रूप को शत शत नमन।
सौजन्य : भंवरलाल