सबगुरु न्यूज-सिरोही। एक बार फिर जिला मुख्यालय पर दशहरा का दिन विवादो का दिन बन गया हैं। इस बार यह विवाद अतिथियों को लेकर है। नगर परिषद के 25 में से 15 पार्षद अतिथियों की सूची में स्थानीय विधायक ओटाराम देवासी, जिला प्रमुख पायल परसरामपुरिया को कथित रूप से नजर अंदाज किए जाने को लेकर आक्रोशित हैं।
वहीं कथित रूप से राजकार्य में बाधा का मामला दर्ज व्यक्ति के साथ जिला कलक्टर व पुलिस अधीक्षक को मंच साझा करवाए जाने को भी नेताओ ने एक मुद्दा बनाया है।
इसे लेकर दशहरा के समय कार्यक्रम स्थल पर ही कार्यक्रम से अलग होने क सन्देश लोगो के बीच देने जैसी अप्रत्याशित घटना होने की आशंका है, जो प्रशासन और आयोजक दोनों के लिए फजीहत का कारण बन सकता है।
नगर परिषद के कांग्रेस और भाजपा के आधे से ज्यादा पार्षद पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी रावण दहन कमेटी नहीं बनाने तथा अतिथियों की सूची गोपालन राज्यमंत्री ओटाराम देवासी व जिला प्रमुख को नजरअंदाज किए जाने को लेकर नाराज हैं। इतना ही नहीं हाल ही में एक विवाद में राजकार्य में बाधा का मामला दर्ज होने वाले व्यक्ति के साथ जिला कलक्टर और पुलिस अधीक्षक को भी अतिथि बनाए जाने को लेकर भी असहमति सोशल मीडिया पर सामने आ रही है।
वैसे कांग्रेस पार्षदों के साथ ही भाजपा पार्षदों का भी इस मुद्दे पर सहमति विपक्ष को आने वाले समय में यह रावण दहन आयोजन प्रशासन के खिलाफ एक नया मुद्दा दे देगा।
वैसे गत बार का दशहरा सिरोही सभापति के दशमुखी पुतला दहन को लेकर विवादित रहा था इससे पहले एक दशहरा पूर्व सभापति जयश्री राठौड के विरोध को लेकर भी था। ऐसे में सिरोही में दशहरा राजनीतिक निशाना साधने का एक प्रमुख माध्यम रहा है। वैसे नेता प्रतिपक्ष ने भी इस मामले शनिवार को धरना-प्रदर्शन करने की घोषणा की है।
बोर्ड का अधिकार बहुमत में नीहित
वैसे नगर पालिका अधिनियम की बात किया जाए तो बोर्ड के निर्णय का मतलब वहां पर निर्वाचित पार्षदों का बहुमत से लिए गए निर्णय से है। जैसा कि दावा किया जा रहा है कि 15 पार्षद नगर परिषद प्रशासन के द्वारा रावण दहन समिति गठित नहीं किए जाने और अतिथियों को लेकर उनकी सहमति नहीं होने को लेकर विरोध जता रहे हैं।
ऐसे में कानून के अनुसार यह स्पष्ट है कि इस निर्णय में बहुमत की यानि की बोर्ड की कोई सहमति नहीं है। ऐसे में बोर्ड में रावण दहन के प्रस्ताव को पारित करवाने में समस्या आ सकती है। वैसे आयुक्त और सभापति उन्हें दिए हुए वित्तीय अधिकारों से ऐसा कर सकते हैं, लेकिन उनके यह अधिकार सीमित है। लम्बे समय से बोर्ड की बैठक नहीं होने और चालीस-चालीस लाख रुपये से ज्यादा के काम बिना बोर्ड की सहमति के किए जाने के बाद वह इस अधिकार का उपयोग कर पाएंगे या नहीं यह नीति नियंता तय कर पाएंगे।
वैसे यह उल्लेखनीय है कि जोधपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष राजेन्द्र गहलोत के खिलाफ एसीबी में जो मामले चल रहे हैं और जिस मामले में वहां के सचिव की गिरफ्तारी हुई थी वह मामले भी इसी तरह से वित्तीय अधिकारों की बोर्ड की सहमति के बिना वायलेशन किए जाने को लेकर ही हैं। आने वाले चुनावी समय में विपक्ष के लिए यह मामले महत्वपूर्ण होंगे।
भाजपा में अंदरूनी खींचतान का नतीजा तो नही
इस बार का दशहरा विवाद भाजपा के ही दो गुटों के बीच खींचतान का नतीजा बताया जा रहा है। अगले साल चुनाव है और एक दूसरे पर शक्ति प्रदर्शन करने का विजयदशमी से बेहतर शुरूआत नहीं हो सकती है। ऐसे में पार्टी हलके में ये चर्चा है कि इस बार एक नेता दूसरे को अपनी शक्ति का अहसास करवाने के लिए इस मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इसमें हो सकता है कि प्रशासन मात्र एक कंधा हो, लेकिन निशाना भी भाजपा है और निशाना लगाने वाले भी। वैसे इस बार गोपालन मंत्री और स्थानीय विधायक ओटाराम देवासी शिवगंज के दशहरा महोत्सव के अतिथि के रूप में वहां जा रहे हैं। इस विवाद के पीछे कालका तालाब के बाद हुए घटनाक्रम को भी एक वजह माना जा रहा है।
पढिये क्य हुआ था पिछ्ले दशरे पर….
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