सबगुरु न्यूज। प्रेम पन्नों पर ही लिखा जाता हैं हाशिए पर नहीं। सागर का जल प्रेम के पन्ने की तरह से होता है जो हर बार बरसात से स्नान करता हुआ सदा निर्मल व नूतन ही रहता है और यह संदेश देता है कि भले ही जीवन में कितने भी उतार चढ़ाव आए लेकिन मन में बसे प्रेम को बदला नहीं जाता।
हर बार बरसात का पानी तरह तरह की मिट्टी कंकड़ पत्थर तथा गंदे नालों का पानी लेकर सागर में पहुचा देता है लेकिन अपने प्रेम रूपी गुण को रखता हुआ सागर उन सब को अपने मे समा कर उसे शुद्ध ओर निर्मल बना देता है।
हाशिया एक आदर्श होता है जो हकीकत को बयां करता है। कमजोर सोच हाशिए को आईना दिखाती हैं और पन्ने पर उसका बौनापन दिखाती है, यही सोच प्रेम के पन्ने पर नफ़रत की कालिख पोत पूरे प्रेम के पन्ने को दूषित कर घृणा का माहौल बना देती हैं।
किलों की दीवारें ढह गई। हवेली के झरोखे टूट गए। गरीब की झोपड़ी उड गई फिर प्रेम का मंदिर नहीं टूटा। ढाई आखर (शब्द) होते हैं प्रेम में और वह केवल दिल में ही बसता हैं। प्रेम ही सृष्टि तथा जीव को अनजाने बंधन में बांधे रख कर अपने हस्ताक्षर करता है और सभी में सहज ही एक आकर्षण पैदा कर “मै” से “हम” की ओर ले जाता है।
“मै” से “हम” की ओर ले जाने वाला मार्ग प्रेम की ओर ले जाता है और उस प्रेम से जीव “मैं “और “तू ” का अंतर भूल जाता है, तब ही कोई श्रेष्ठ योगी ओर सिद्ध जन कहलाता है। फूल उसके रंग रूप से नहीं वरन उसकी खुशबू से जाना जाता है, जैसे शरीर का महत्व उसकी जीवित आत्मा से होता है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू जीवन के प्रेम के पन्ने मे हाशिऐ को महत्व दे ताकि तेरे प्रेम का मूल्यांकन हो जाएगा जैसे सागर के किनारे पाल बनी हुई होती है। वहां हंस बैठ कर प्रेम से मछलियों का शिकार करता है भले ही बरसात के कारण उस सागर का जल हर बार नया ही क्यो न आ जाए।
हंस को मछलियों से नहीं सागर से प्रेम होता है, यदि सागर सूख जाता हैं तो हंस वहा रमण करने नहीं जाते। पाल रूपी हाशिए पर बैठे हंस का मोल सागर की विशालता से नहीं नहीं आंका जाता है वरन हंस के हाशिए से सागर की थाह समझ में आ जाती है।
हंस चुग चुग कर मछलियों को खाकर सागर की गंदगी को दूर कर देता हैं। इसलिए हे मानव तेरे विषय में जो टीका टिप्पणी करते हैं तू उसका चित्र अपने मन रूपी आईने में देख। निश्चित रूप से तेरा पन्ना तू खुद ही साफ़ सुथरा कर लेगा अन्यथा हाशिया तेरी बरबादी का कारण बन जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल