सबगुरु न्यूज। आखिर यशवंत सिन्हा के स्वर कैसे बदल गए, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और अटल सरकार में वित्तमंत्री रहे सिन्हा अपनी ही सरकार के खिलाफ बेसुरा राग क्यों अलापने लगे? क्या सिन्हा जो कुछ बोल रहे हैं वह सच है? या इसके पीछे वजह कुछ ओर है?
खुद सिन्हा के बयानों पर गौर करें, उन्होंने दावा किया कि 10 महीने पहले कश्मीर मुद्दे पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का वक्त मांगा था, लेकिन उन्हें ‘दुख’ है कि मिलने का समय नहीं मिल सका।
पूर्व वित्त मंत्री ने कहा कि ‘मैं दुखी हूं, मैं निश्चित तौर पर दुखी हूं, आप मिलने का समय मांगते हैं, 10 महीने बीत गए, मैं आपको बता दूं कि जब से मैं सार्वजनिक जीवन में आया हूं, राजीव गांधी से लेकर भारत के किसी प्रधानमंत्री ने मुझे मिलने का वक्त देने से मना नहीं किया। किसी प्रधानमंत्री ने यशवंत सिन्हा को नहीं कहा कि मेरे पास आपके लिए वक्त नहीं है।
उन्होंने कहा कि और यह मेरे अपने प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया। ऐसे में यदि कोई मुझे फोन करे और कहे कि कृपया मेरे पास आएं, तो माफ करें, वक्त निकल चुका है, मुझसे बुरा बर्ताव किया गया।
सिन्हा के बयानों से झलक रहा है कि असल दर्द क्या है, उन्हें इस बात का मलाल है कि कोई उन्हें क्यों नहीं पूछ रहा। वे राजनीति में अब भी अपनी तूती बुलवाना चाहते है। सनद रहे कि बीजेपी में लालकृष्ण आडवानी जैसे पार्टी के नेता अब मार्गदर्शक की भूमिका में आ गए है, सिन्हा को भी इस बात को समझना होगा।
सिन्हा या तो इस बात को समझ नहीं पा रहे या समझना नहीं चाह रहे। वे सरकार का नहीं बल्कि संगठन का अंश है। सरकार अपने काम करने का तरीका खुद इजाद करती है। सरकार का मुखिया और उसके सिपहेसालार तय करते हैं। संगठन तो सिर्फ उन्हें सलाह देने का काम कर सकता है।
देश की अर्थव्यवस्था के बहाने जिस तरह सिन्हा ने मोदी और अरुण जेटली को निशाने पर लिया है, उससे पार्टी बैकफुट पर आ गई है, सिन्हा के बयान न उगलते बन रहे हैं न निगलते। उस पर जिस तरह सिन्हा ने कश्मीर पर तीसरे पक्ष के दखल की जरूरत बताई है यह तो सरकार की नीति पर भी सवाल उठाने जैसा है।
देश की आजादी से लेकर अब तक कश्मीर समस्या जस की तस बनी हुई है, सिन्हा जब वायपेयी सरकार में कद्दावर मंत्री थे, तब उन्हें यह बौधिसत्व प्राप्त नहीं हुआ। तब उन्होंने कभी कश्मीर में तीसरे पक्ष की जरूरत महसूस नहीं हुई। अनायास तीसरे पक्ष की जरूरत बताना सिन्हा के प्रति संदेह पैदा करता है।
सिन्हा अधिकृत रूप से बीजेपी के नेता है, लेकिन उनके तेवर विपक्ष सरीखे नजर आ रहे हैं। उनके बयानों के तीर ईशारा दे रहे हैं कि वे जल्द ही विपक्ष के साथ गलबहीयां डाले नजर आ सकते हैं अथवा 2019 में मोदी को निपटाने के लिए अभी से जमीन तैयार करने में जुट गए हैं।