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ढलते सूरज चाल मानो शंतरज की बिसात - Sabguru News
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ढलते सूरज चाल मानो शंतरज की बिसात

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ढलते सूरज चाल मानो शंतरज की बिसात

सबगुरु न्यूज। ढलता हुआ सूरज, आती हुई शाम और बैचेन होता मन अन्जान ख़ामोशी में डूब जाता है, कुछ जीवन के अपनों की यादों के निकट ले जाता है। सांझ रूपी दुल्हन आधे अंधेरे में होती है जो दूर से नजर आती है और ऐसा लगता है कि वो अपने आप को छिपा रही है।

एक एक कर के उगते तारे रात्रि का श्रृंगार कर रात को तारा नगरी में दुल्हन की तरह सजाकर हर तरफ झिलमिलाहट फ़ैला देता है और दुल्हन का प्रियतम चांद उसमें खो जाने के लिए रात भर उसे ढूंढता है।

कुछ ऐसी ही कहानी जीवन के शंतरज की होती है। जहां सूरज बन व्यक्ति अपनी जीत के लिए अपने और पराए को अपनी हर चाल से छलता हुआ विजयी हो जाता है। वह अपनी ढलान रूपी सांझ को भूल जाता है। जिस तरह सांझ सूरज को डूबो देती है वैसे ही वह विजेता अपनी विजयी ढलान पर सांझ रूपी दुल्हन को तलाशता है तो बैचेन तथा मायूस हो जाता है।

अपने प्रचंड तेज़ से अपनी पूरी यात्रा में जिन लोगों को वह जलाकर आ चुका है वे सब जख्मी बन उस विजयी सूरज की कब्र खोद रहे हैं और उसकी विजयश्री दुल्हन को दफ़न करने की तैयारी कर रहे हैं।

विजेता के जुल्मों से परेशान दुल्हन अब उसे तलाक़ देने की ओर बढ़ रही है और विजेता ढलते सूरज की तरह दुल्हन के सामने गिडगिडा रहा है। वह हर तरह के सुख साधन उसे देने का वचन दे रहा है।

दुल्हन समझ रही हैं कि यह एक स्वच्छ मन का विजेता नहीं है और प्रेम को भी छल, कपट, झूठ, फरेब, लालच और अंहकार से पाने के लिए अपनी शातिर शंतरजी चाल से एक फिर मुझे पाना चाहता है। मैंने इसके तलाक़ के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और अब मैं रात्रि में मुझे ढूंढ रहे मेरे शीतल प्रियतम के पास जा रही हूं। वह चली गई और सूरज अस्त हो गया।

संत जन कहते हैं कि ये मानव अपने श्रेष्ठ समय में कल्याण के मूल्यों की परवाह न कर केवल अपने ही हित बात सोचता है वह अंत में परास्त हो जाता है। अतः हे मानव तू सबके हित के लिए कार्य कर, तू सदा ही विजेता रहेगा।

सौजन्य : भंवरलाल