सबगुरु न्यूज। विषय विकार ओर पाप इनका हरण जब कोई कर नहीं पाता है तो वह दूसरों के कर्म का लेखा जोखा रख कर एक मूल्यांकनकर्ता नहीं बन सकता। वजह यह है कि उसकी बुद्धि, विवेक और ज्ञान में पक्षपात का मैलापन आ जाता है, उसकी सोच भी प्रभावित हो जाती हैं।
कर्म के मैदान पर ही भाग्य का लेखा जोखा लिखा जाता हैं, ये मैदान इतना विस्तृत होता है जहां लेखा जोखा करने वाले को विषय हीन बनना पडता है अगर ऐसा ना होता है तो हर पत्थर पारस बन जाएगा तथा खरे पारस को नाले में फेंक दिया जाएगा।
इन्हीं भावनाओं से ओतप्रोत पौराणिक काल की कथा मे बताया गया है कि एक व्यक्ति पापकर्म में लिप्त होकर तथा छल, कपट, झूठ, फरेब, लालच के लिबास के सहारे बलपूर्वक सबके धन का हरण कर अपने आप को श्रेष्ठ राजा घोषित करवाता है।
एक दिन अचानक वह दुर्घटना का शिकार हो कर मर जाता हैं। तब यमराज के दूत आते हैं ओर उसे नरक की यातना की ओर ले जाते हैं। इतने में धर्म राज के दूत आते हैं और यमराज के दूतों से लड़ने लग जाते हैं, वे कहते है कि हम इसे स्वर्ग में ले जाएंगे। स्थिति बिगडती देख सब धर्मराज और यमराज के पास पहुंच जाते हैं।
मामला गंभीर देख धर्म राज और यमराज अपने लेखा जोखा रखने वाले को बुलाते हैं। लेखा जोखा रखने वाले जब कर्मो की खाता बही देखते हैं तो स्थिति यमराज के पक्ष में हो जाती हैं लेकिन इतने में धर्मराज के लेखा जोखा रखने वाले ने अपनी दलील दी कि यह निश्चित एक घटिया और पापी व्यक्ति है लेकिन इसका एक कर्म इतना बड़ा है कि ये स्वर्ग में ही जाएगा, कारण इसने सदा संतों का आशीर्वाद लिया।
धर्म राज प्रसन्न हुए ओर अपने लेखा जोखा रखने वाले को वरदान देकर जगत में चित्रगुप्त के नाम से प्रसिद्ध कर दिया और कार्तिक शुक्ल पक्ष की दूज को जिसे यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है उस दिन चित्रगुप्त तथा उसकी क़लम व दवात को पूजवा दिय़ा। धर्मराज ब्रहमा के मानस पुत्र थे उन्हें ब्रहमा जी ने संसार के समस्त प्राणियों का लेखा जोखा करने का काम सौंप दिया।
धर्मराज ने भी अपनी सहायता के लिए ब्रहमा जी की काया से चित्रगुप्त को उत्पन्न करा अपना सहायक बना लिया। यही चित्रगुप्त, व्यक्तियों के कर्म के मैदान पर भाग्य का लेखा जोखा करते है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने विषय विकार से मुक्त होकर अपने को शाश्वत कर्म में लगा ले, अन्यथा तूने जिस कर्म के सहारे शान, शोकत, ऐश और धन को प्राप्त किया है वह सब तुझे एक दिन लात मार कर चले जाएंगे और भाग्य में तेरे यमदूत ही रह जाएंगे।
सौजन्य : भंवरलाल