गया। बिहार में सूयरेपासना और लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ का शुक्रवार को समापन हो गया। खास बात यह कि छठ पूजा में राज्य के प्रमुख पर्यटक स्थल बोधगया में विदेशी श्रद्धालुओं की भी सहभािगता कई घाटों पर दिखी।
पावन निरंजना (फल्गु) के तट पर विदेशी महिलाओं ने भगवान भास्कर की पारंपरिक तरीके से आराधना की और उन्हें अघ्र्य भी अर्पित किया।
वैसे, सूर्य की पवित्रता के इस चार दिवसीय पर्व पर हजारों व्रतियों ने पावन निरंजना नदी में भगवान भास्कर को अर्पित किया, लेकिन केंदुई और बोधगया घाट पर विदेशी छठव्रती महिलाएं लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रहीं।
बोधगया आए कई विदेशी पर्यटक लोक आस्था के इस पर्व के पारंपरिक रीति-रिवाजों को कैमरे में कैद करने को बेचैन दिखे, तो कुछेक विदेशी अपनी इच्छा को रोक न सके और इस पर्व की जानकारी प्राप्त करने के बाद भगवान भास्कर को जल अर्पित किए।
कई विदेशी महिलाएं तो छठव्रत करने के लिए खासतौर से यहां आई थीं। ओसाका (जापान) से आए मीका हिरकवा ने बताया कि छठ पर्व की महिमा के बारे में जापान में भी लोगों ने सुना है। यहां के लोग पवित्र मन एवं स्वच्छतापूर्ण तरीके से इस पर्व को मनाते हैं।
उन्होंने कहा कि मैं और मेरी पूरी टीम जापान से यहां इस पर्व में शरीक होने के लिए आए हैं। यहां के लोगों का सूर्य के प्रति आस्था बहुत ही अनोखा है।
उनके साथ मीनाको यादी, नाक डिरोयुकी, सारी हराकावा, चुस्की काई, मेरेल टूशामी, मनामी निमुरा एवं सिद्धार्थ कुमार, देवेंद्र पाठक एवं हरिद्वार से आए योग शिक्षक तनु वर्मा भी टीम में मौजूद हैं। इधर, केंदुई घाट में भी विदेशियों ने भगवान भास्कर की अराधना की और अघ्र्य अर्पित किया।
यहां विदेशी पर्यटकों द्वारा छठव्रतियों को पूजा के लिए सजाए गए सूप दान करते हुए भी देखा गया। विदेशी पर्यटकों का मानना है कि इस पर्व के जरिए भारत की संस्कृति को नजदीक से देखने को मिला। कई छठ घाटों पर विदेशी पर्यटकों द्वारा नारियल, फल आदि पूजा के सामान छठव्रतियों को दान दिया गया।
छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है और सप्तमी तिथि को इस पर्व का समापन होता है। पर्व का प्रारंभ ‘नहाय-खाय’ से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं। इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है।
नहाय-खाय के दूसरे दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में स्नानकर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर भगवान भास्कर की आराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस पूजा को ‘खरना’ कहा जाता है।
इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रतियां टोकरी (बांस से बना दउरा) में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब, या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य का अघ्र्य अर्पित करती हैं और इसके अगले दिन यानि सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अघ्र्य अर्पित कर घर लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर ‘पारण’ करती हैं, यानी व्रत तोड़ती हैं।