सबगुरु न्यूज। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी से कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी तक का समय देवशयन काल माना जाता है।
अर्थात ऐसी मान्यता है कि सारे देवता सो जाते है तथा हर तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जातीं हैं। कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को विष्णु जी निद्रा से जाग जाते हैं तथा सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ हो जाते हैं।
हमारे आदि ऋषियों ने इस पूरे चतुर्थ मास में एक स्थान पर बैठ कर जप तप के निर्देश दिए तथा वर्षाकाल मे होने वालीं बीमारियों से बचने के लिए तथा वर्षा से सभी अव्यवस्था फ़ैल जाने के कारण इन चार माह में सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाने के निर्देश दिए। यह वर्षा ऋतु का चतुर्थ मास देव शयन काल कहलाया। वास्तव में ये ही जमीनी हकीकत है।
प्रकृति ने अपना प्रबन्धन सुव्यवस्थित करते हुए जीव ओर जगत को मोसम के अनुसार ही व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है। सूर्य के दैनिक चालन से दिन रात बनायी तो वही सूर्य की वार्षिक गति से ऋतु निर्माण कर उसी अनुसार कार्य करनें के संदेश दिए।
वर्षा ऋतु के साथ चार महिनों में अपनें विशेष प्रबन्धन मे प्रकृति ने आन्तरिक ऊर्जाओं को बढा, सृजन करने के सूत्र को बता सर्वत्र वर्षा करा गर्मी की ऋतु से तपती धरती को जल से परिपूर्ण कर पृथ्वी को उपजाऊ बना वनस्पतियों तथा खाद्यान्नों को उतपन्न किया।
वर्षा ऋतु के काल में यातायात खानपान उद्योग धंधे सभी प्रभावित होते हैं इस कारण इन चार माह में सभी कार्य मे अवरोध पैदा होने से सभी मांगलिक कार्य रोक दिए जाते है तथा उसके बाद सभी कार्यो को सुचारु रूप से किया जा सकता है।
अतः प्रकृति ने सभी कार्यो के लिए वर्षा काल का अवरोध खत्म कर दिया। यही शुभ कार्यो के जागरण का काल है। देव अर्थात शुभ करने वाली शक्ति अतः यही देव ऊठनी एकादशी है और शुभ कार्यो के प्रारंभ का काल है।
संत जन कहतें है कि हे मानव प्रकृति का हर काल जाग्रत रहता है और हर काल में उसकी क्रिया अपना काम करती है। प्रकृति स्वयं शक्ति है और उसके सो जाने से प्रलय के अतिरिक्त और कुछ भी नही होगा।
ये सदैव जाग्रत रह कर जगत ओर जीव का कल्याण करतीं हैं। चाहें कोई सा भी ऋतु काल क्यो ना हो। इसलिए हे मानव तू संयमित होकर शयन कर ओर अपने कर्म को हर ऋतु मे बखूबी से कर तेरा जीवन सफ़ल हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल