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अहंकारी तूफान ने बुझा दिए लाखों चिराग - Sabguru News
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अहंकारी तूफान ने बुझा दिए लाखों चिराग

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अहंकारी तूफान ने बुझा दिए लाखों चिराग

सबगुरु न्यूज। हे राजन! तुम्हारे दिल में उठे एक भयानक अहंकारी तूफान ने लाखों लोगों के चिराग बुझा दिए। तबाही मचाकर तुम्हारे दिल और दिमाग में बसी, बरसों पुरानी बदले की भावना ने सबको जीते जी मार दिया। तुम अनीति के बादशाह हो। छल कपट झूठ फरेब तुम्हारी दौलत है। मानव और मानव के मूल्यों को तुम बैरहमी से कुचल रहे हो। यहां सत्य आंसू बहा रहा है झूठ अहंकारी आवाज की गर्जना करता हुआ तबाही का तांडव करता हुआ राज कर रहा है।

हे राजन हर कोई तुमसे न्याय व सुरक्षा की कमना करता है। जब तुम ही अपनी अंधी नीति से बेगुनाहों को जब गुनाहगार बना उनका मान हरण कर रहे हो उस राज्य की क्या स्थिति होगी।तथार अपार धन जन की क्षति होने के बाबजूद भी आप फिर विनाशकारी मार्ग की ओर बढ़ रहे हो। यह कहते कहते विदुर जी की आंखों में आंसू आ गए।

समुद्र से ऊठा तूफान बेरहमी होकर हवा में उडता ही जा रहा था और अहंकारी आवाज करता हुआ सबको अपने आगोश में जकडता जा रहा था। लाखों करोड़ों लोगों के जिन्दगी, घर व रोजगार को मिटा गया था वह। दया और रहम उससे लाखों मील दूर थी। हर बार हवा की बढ़ती रफ्तार के साथ वो जुल्म ढाता ही रहा।

धर्म ओर संस्कृति धराशायी हो गई। एक अबला चीखती चिल्लाती रही पर राजा का ह्रदय कठोर था, वहां पर बैठे हर शूरवीर अपने हितों को साधने के कारण विरोध नहीं कर पा रहे थे। दबे स्वर में किसी ने भी विरोध किया तो उसे डरा धमका कर चुप कर दिया।

भरी महफ़िल में वह लक्ष्मी बदले के कारण अपमानित कर दी गई। धन, दौलत, राज्य उसका पहले ही छीन लिया गया। धर्म बेबस होकर रोता रहा और अधर्म बार बार अपनी जीत के डंके बजा बजा कर खुशियां मनाता रहा।

लक्ष्मी का बेरहमी से चीर हरण तो हो गया लेकिन सभ्यता और संस्कृति पर एक भारी कलंक सदा के लिए लग गया। वक्त बदला फिर अपमानित लक्ष्मी ने सभी साजिश रचने वाले ओर राजा को काल के मुंह में डाल दिया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू दिल में बैर बदले की भावना रख कर कोई काम मत कर अन्यथा प्रकृति तुझे क्षणिक सफलता तो देगी लेकिन सदा के लिए तुझे पछतावे की आग में डाल कर तेरी चमक और आवाज को जंग लगा कर तुझे दर दर भटकने को मजबूर कर देगी। इसलिए हे मानव तू दया रख तथा तेरे घट में मानव का मूल्य बना उसके अस्तित्व को स्वीकार। तेरा कल्याण होगा।

सौजन्य : भंवरलाल