काठमांडु। भूकंप प्रभावित नेपाल के सुदूर इलाकों में खराब मौसम और तालमेल के अभाव के चलते मौजूदा जरूरतमंदों तक अंतरराष्ट्रीय मदद पहुंचाने में जहां काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं राहत प्रयासों की धीमी गति को लेकर यहां लोगों में गुस्सा बेहद बढ़ गया है।
नेपाल में भूकंप को आए पांच दिन हो चुके हैं और यहां के सुदूर गांवों में जहां तत्काल मदद की जरूरत है वहां अब तक पहुंचा नहीं जा सका है जबकि अंतरराष्ट्रीय मददकर्मी अभी तक काठमांडु में ही फंसे हुए हैं।
शनिवार को आए भूकंप में लगभग छह हजार से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 11,000 लोग घायल हुए हैं। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भूकंप के कारण अस्सी लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं।
जानकारी के अनुसार, ब्रिटेन के एक दल को छोड़कर सभी विदेशी बचाव दल काठमांडु घाटी में तैनात किए गए हैं। वहीं, एक स्थानीय जन स्वास्थ्यकर्मी ने कहा कि सरकार की ओर से निर्देश और सूचना उपलब्ध करवाने में हो रही देर के कारण सुदूर जिलों में तत्काल राहत के प्रयास असफल हो रहे हैं।
साथ ही, नेपाल के सूचना एवं संचार मंत्री मिनेंद्र रिजाल ने कहा कि राहत अभियान जारी हैं लेकिन और बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि जीवन फिर से सामान्य हो रहा है लेकिन इसे पूरी तरह सामान्य होने में कुछ समय लगेगा।
रिजाल ने कहा कि हम अभी तक राहत पहुंचाने का प्रबंधन पूरी तरह से नहीं कर पाए हैं। विदेशी मदद लाई गई है लेकिन सहयोगी संगठनों का कहना है कि राजधानी के एकमात्र रनवे वाले हवाई अड्डे की सीमित क्षमता, ईंधन की कमी, सड़कों को भूकंप में पहुंचे नुकसान और पहाड़ी देश के दुर्गम इलाकों के कारण भूकंप पीड़ितों तक मदद पहुंचाने के प्रयासों में अवरोध पैदा हो रहे हैं।
राजधानी के अस्पतालों में मरीजों की संख्या बहुत अधिक है और डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें दवाएं और ऑपरेश्न संबंधी उपकरणों की जरूरत है। बड़ी संख्या में लोग भूकंप से क्षतिग्रस्त हुई इमारतों में वापस जाने से डर रहे हैं और बाहर ही रह रहे हैं।
भूकंप में नष्ट हुए क्षेत्रों के प्रति अपनी सरकार की प्रतिक्रिया पर गुस्सा जताते हुए एक नेपाली व्यक्ति ने कहा कि हम नरक में रह रहे हैं। एक अन्य व्यक्ति ने कहा कि अगर सरकार एंव किसी अन्य संगठन की ओर से कोई मदद नहीं मिलती, तो हम मर जाएंगे।
वहीं, जब प्रधानमंत्री सुशील कोइराला राहत कार्यों का जायजा लेने के लिए लोगों के शिविरों में गए थे, तब लोगों का गुस्सा भड़क उठा था। इन लोगों ने शिकायत की थी कि उन्हें कोई भी मदद नहीं मिल पा रही है।
कई लोग भूकंप के और अधिक झटकों और महामारियों के बढ़ने के डर से काठमांडु घाटी छोड़कर जा चुके हैं। मेट्रोपोलिटन ट्रैफिक पुलिस डिवीजन के अनुसार अब तक 3,38,932 लोग घाटी छोड़कर जा चुके हैं।
इसी बीच,गुरुवार सुबह भी भूकंप के तीन हल्के झटके महसूस किए गए। ये झटके सुबह छह बजे से नौ बजे के बीच आए।
गौरतलब है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कल रात नेपाल के प्रधानमंत्री कोइराला को फोन करके इस विनाशकारी भूकंप के पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदनाएं जाहिर कीं और राहत एवं बचाव अभियानों के लिए अपने पूर्ण सहयोग का वादा किया। संयुक्त राष्ट्र ने अगले तीन माह तक आपात राहत उपलब्ध करवाने के लिए 41.50 करोड़ डॉलर की मदद की अपील की है।