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HSSF : जड़ों की ओर लौटने का सार्थक प्रयास - Sabguru News
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HSSF : जड़ों की ओर लौटने का सार्थक प्रयास

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HSSF : जड़ों की ओर लौटने का सार्थक प्रयास
HSSF : Hindu spiritual and service fairs 2017
HSSF : Hindu spiritual and service fairs 2017
HSSF : Hindu spiritual and service fairs 2017

जयपुर। प्रातःकाल उठी के रघुनाथा, गुरु पितु मातु नवावहि माथा… को आदर्श मानने वाले भारत जैसे देश में यदि फादर्स डे और मदर्स डे धूमधाम से मनाए जाने लगे तो कुछ लोगों का सचेत होना आवश्यक हो जाता है। देश की राजधानी दिल्ली जब स्मॉग के कारण मेडिकल इमरजेंसी का दंश झेलने लगे तो कुछ लोगों के मन में अकुलाहट होना जरुरी हो जाता है।

जब जीवनदायिनी पावन गंगा की सफाई के लिए सरकारों को अलग से मंत्रालय बनाकर अरबों रुपए फूंकने पड़ें तो कुछ लोगों के मन में वेदना होना जरुरी हो जाता है। इस वेदना में से एक भाव प्रस्फुटित पुष्पित तथा पल्लवित होता है जिसे हम ईशावास्यं इदं सर्वम भी कह सकते हैं।

इस कल्याणकारी भाव के प्रसार के लिए पिछले कुछ वर्षों से देश के विभिन्न भागों में हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा मेलों का आयोजन किया जाने लगा है। ये मेले अपने आप में अनूठे आयोजन हैं। ज्ञान, संस्कार तथा मनोरंजन की त्रिवेणी इनकी विशेषता है।

मेले की गतिविधियों में परम्परागत खेलों का अपना विशिष्ट महत्व है तो साथ ही हजारों लोगो का एक साथ वन्देमातरम गायन भी अदभुत है। हिन्दू आध्यत्मिक एवं सेवा फाउंडेशन द्वारा जयपुर में लगातार तीसरे साल इस तरह का मेला आयोजित किया जा रहा है। मेले का मुख्य उद्देश्य भारत की सामाजिक एवम् सांस्कृतिक विरासत को सहेजना तथा प्रतीकों के प्रभावी उपयोग द्वारा मूल्यों व संस्कारों को स्थापित करने का प्रयत्न करना है।

इस मेले में वन तथा वन्य जीव संरक्षण की दृष्टि से वृक्ष वंदन, नाग वंदन के कार्यक्रम किए जाते हैं। पारिस्थितिकी संरक्षण की दृष्टि से सभी प्राणी-प्रजाति एवम् वनस्पति के लिए सम्मान हेतु गौ- वंदन, गज वंदन एवम् तुलसी वंदन के कार्यक्रम होते हैं। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भूमि वंदन एवम् गंगा वंदन इसका बडा उद्देश्य है।

पारिवारिक तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना की दृष्टि से माता- पिता, शिक्षकों एवं अपने से बड़ों के प्रति सम्मान के लिए मातृ-पितृ वंदन, आचार्य वंदन एवं अतिथि वंदन के कार्यक्रम भी सम्पन्न होते हैं। महिलाओं के सम्मान हेतु कन्या वंदन एवं राष्ट्र भक्ति के लिए भारत माता वंदन तथा परम वीर वंदन कार्यक्रम किए जाते हैं।

ये आयोजन अपनी जीवनशैली के सनातन मूल्यों को सहेजने की दृष्टि से एक आस जगाते हैं। विश्वगुरु भारत की परिकल्पना को समझने के लिए आज के युवाओं को एक मंच उपलब्ध करवाते हैं। इन मेलों में दादी नानी का घर, हेरिटेज गांव, विज्ञान मॉडल प्रदर्शनी, फोटोग्राफी पोस्टर प्रदर्शनी, सांस्कृतिक व रचनात्मक प्रतियोगिताएं, चित्रकला प्रतियोगिता, प्रश्न मंच प्रतियोगिताएं, सामाजिक समरसता सम्मलेन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवम् छः थीमों पर आधारित प्रदर्शनी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहते हैं।

हमारी जीवनशैली तो साहचर्य, सहयोग व सामंजस्य से परिपूरित रही है। नागपंचमी और आंवला नवमी भी हमारे त्योहार हैं। बरगद और पीपल के बिना हमारे मंदिर अधूरे होते थे। मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण करने वाले ही हमारे आदर्श होते हैं। ये सारी बातें ठीक हैं किन्तु वैश्वीकरण के दौर में नई पीढ़ी बहुत सी बातों से अनभिज्ञ भी है।

इस नई पीढ़ी को असली भारत के दर्शन करवाने हैं तो भारतीयता से ओतप्रोत हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले जैसे कार्यक्रमों का आयोजन नितांत आवश्यक है। इन मेलों में विभिन्न सामाजिक तथा आध्यात्मिक संगठनों की स्टॉल भी होती हैं। इन पर उन संगठनों की ओर से किए जा रहे सेवा कार्यों की जानकारी ली जा सकती है।

भारतीय जीवन दर्शन में सेवा का बहुत महत्व है। बहुत से संगठन इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं किन्तु उनका यथोचित प्रचार प्रसार नहीं है। सीधे सरल लोगों में प्रसिद्धिपरांगमुखता का भाव भी रहता है इसलिए हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन ने ऐसे संगठनों की जानकारी आम जनता तक पहुंचने के लिए मेले का सहारा लिया है।

मेले के आयोजकों ने प्रतीकों के माध्यम से अपने विचार को प्रसारित करने का कार्य किया है। भूमि तथा गंगा को प्रकृति का प्रतीक मानकर इनके वंदन का कार्यक्रम सीधे तौर पर लोगों को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ता है। भारत में माता पिता, गुरु तथा अतिथि को देवता की भांति सम्मान दिया जाता था किन्तु आधुनिकता के दौर में परम्पराएं कहीं पीछे छूट गई।

कर्तव्य भाव में कमी, संस्कारों में गिरावट ने ज्येष्ठ श्रेष्ठ लोगों के प्रति आदर की परम्परा को भी नष्ट कर दिया है। परिवारों के पतन से हमारे यहाँ भी बचत की प्रवृति कम होती जा रही है, कर्जा बढ़ता जा रहा है। युवा दबाव में है। परिवारों के पतन से बुजुर्ग निराश्रित हो रहे हैं। हम आधुनिक होने के साथ साथ दुखी भी होते जा रहे हैं।

इन प्रतिकूल परिस्थितियों में हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। अपनी जड़ों की ओर लौटने का यह अच्छा प्रयास है, यह परिवर्तनकारी भी हो तो शुभ होगा।

विवेकानंद शर्मा