सबगुरु न्यूज। वो बाजार चांदी सोने के सिक्कों वालों का था। वहां पारस एक मामूली सा पत्थर बन कर रह गया। वहां भारी शब्द जाल और अहंकारी आवाज का तूफान था। वहां के माहौल में घृणा तथा नफ़रत की आंधियां बर्बाद करने की धूल उडाती थीं। इस माहौल में कपट का भूकंप सब का दिल दहला रहा था।
नीति एक फरेबी नायिका बनकर पाखंड के कलश में अपनों को ही सीच रहीं थी। लोभ लालच की फसल वहां लहलहा रही थी। छल रूपी व्यापारी अपनी तानाशाही का तांडव कर रहा था।
माटी के भांडे वहां तोड़ दिए गए और लोहे के पात्र फेंक दिए गए। गरीब की लकड़ियों को वहां जोर जबरदस्ती से समुद्र में डुबो दिया गया व बेरहमी के पत्थरों को समुद्र में तैरा दिया गया।
लूट ऐसी जोरों की हुईं कि लुटेरों का दिल भी दहल गया। इतिहासकार की क़लम रो पड़ी और कवि का दिल भी बर्फ की तरह जम गया। सत्य चीखता चिल्लाता ही रह गया, असत्य सर्वत्र मुंह उठाए राज करता रहा।
जमीन के यह हाल देख पाताल भी कांपने लगा और अपनी संस्कृति की लाज बचाने के लिए वह अपनी मायावी शक्ति से अदृश्य हो गया। अदृश्य होकर वह सोचने लगा कि यह सब कुछ जमी पर भरीं दोपहरी में हो रहा है तों रातों का क्या हाल होगा। जहां जटायु जैसे गरीब मददगार को मार दिया जाता है और दिन दहाडे महिलाओं को लज्जित कर उनका हरण कर लिया जाता है।
अपना युद्ध जीतने तथा भारी लाभ के लिए एक कथा का मंचन किया गया और जन मानस को बदले की आग में झोंक दिया गया। चारों तरफ आग लग गई और सोने की लंका जल गई। फिर भी आताताईयो के खूब हौसले बुलंद थे। सर्वत्र जंग का ऐलान कर दिया गया और जन मानस को एक विपदा की बाढ़ में धकेल दिया गया।
इतना होने पर भी प्रजा ने राजा पर भरोसा रखा क्योंकि जनता के विश्वास को भी उसने झूठ फरेब से जीत लिया। वह अंहकारी रावण था जो अपनी प्रजा को समुद्र के पास किनारे पर ले गया ओर एक भारी पत्थर उठाकर उसने समुद्र में फेंक दिया और पाप रूपी पत्थर को समुद्र में तैरा दिया।
संत जन कहते हैं कि हे मानव इस कलयुग में सर्वत्र पाप, कपट, झूठ, फरेब, लालच और अहंकार ही विजयी होकर हाहाकार मचाता है और अपने आप को मसीहा घोषित कर सबको एक हसीन सपना दिखाता है। रावण जब अपनी सेना को समुद्र के पास किनारे पर ले गया और एक भारी पत्थर उठाकर उसने समुद्र में पत्थर फेंका तो वहा पर भी छल कर गया, मन में पत्थर को राम की कसम दे दी और कहां तू पानी में तैर जा। राम की कसम खाते ही पत्थर पानी में तैर गया।
इसलिए हे मानव तू अपनी जीत के लिए छल कपट का सहारा मत ले, नहीं तो रावण की तरह तेरी अंतिम हार हो जाएगी। इसलिए तू सत्य के मार्ग की बढ। तू हारकर भी जीत जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल