नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को दिवाला और दिवालियापन संहिता में बदलाव लाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी। इससे कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों/व्यक्तियों को उनकी तनावग्रस्त कंपनियों पर नियंत्रण हासिल करने से रोका जा सकेगा।
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गुरुवार को इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए, जो दिवालिया और बैंकिंग संहिता (आईबीसी) 2016 में परिवर्तन करता है। इसे मंत्रिमंडल द्वारा उनके पास बुधवार को भेजा गया था।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुने हुए संपादकों के साथ एक बैठक में यह जानकारी देते हुए कहा कि इस अध्यादेश से बड़े कर्जदारों को अपनी ही संपत्ति के लिए बोली लगाने से रोकने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि हालांकि यह अध्यादेश उन्हें तनावग्रस्त परिसंपत्तियों की बोली लगाने से पूरी तरह रोकता नहीं है, लेकिन उनके लिए ऐसा करना मुश्किल जरूर बना देता है।
एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि आप ऐसा नहीं कह सकते कि मेरा खाता एनपीए (फंसा हुआ कर्ज वाला या गैर निष्पादित परिसंपत्तियां) है, लेकिन मैं बोली लगाऊंगा। यह भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
उन्होंने कहा कि मुझे भी इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी। आप तनावग्रस्त संपत्ति भी रखेंगे और नीलामी के दौरान उसकी बोली भी लगाना चाहेंगे, ऐसा नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि एक समाधान यह हो सकता है कि एनपीए खाताधारी कम से आगे आकर 1 लाख करोड़ रुपए की परिसंपत्ति (फंसा हुआ कर्ज) का कम से कम 10-15 हजार करोड़ रुपए के ब्याज का भुगतान तो कर दे।
दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) को कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा लागू किया जा रहा है, जो 2016 के दिसंबर से प्रभावी है और समयबद्ध दिवालिया समाधान प्रक्रिया प्रदान करता है।
प्रस्तावित बदलावों से तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए खरीदारों का चयन करने की प्रक्रिया को सरल बनाने में मदद मिलेगी।
आधिकारिक बयान में कहा गया कि अध्यादेश का उद्देश्य अवांछनीय एवं बेइमान लोगों को उपर्युक्त संहिता के प्रावधानों का दुरुपयोग करने अथवा उन्हें निष्प्रभावी बनाने से रोकने के लिए आवश्यक हिफाजती इंतजाम करना है।
सरकार ने कहा कि संशोधनों का उद्देश्य उन लोगों को इसके दायरे से बाहर रखना है जिन्होंने जानबूझकर डिफॉल्ट किया है अथवा जो फंसे कर्जो (एनपीए) से संबंधित हैं और जिन्हें नियमों का अनुपालन न करने की आदत है और इस तरह जिन्हें किसी कंपनी के दिवाला संबंधी विवादों के सफल समाधान में बाधक माना जाता है।
इस तरह के विवाद समाधान अथवा परिसमापन प्रक्रिया में भाग लेने से इस तरह के लोगों को प्रतिबंधित करने के अलावा उपर्युक्त संशोधन में इस तरह की रोकथाम के लिए यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि ऋणदाताओं की समिति मंजूरी देने से पहले विवाद समाधान योजना की लाभप्रदता एवं संभाव्यता सुनिश्चित करेगी। भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) को भी अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि आईबीबीआई के नियम-कायदों को भी हाल ही में संशोधित किया गया है, ताकि विवाद समाधान पेश करने वाले आवेदक के पूर्ववर्ती से संबंधित सूचनाओं के साथ-साथ वरीयता, कम मूल्यांकन या धोखाधड़ी से जुड़े लेन-देन के बारे में भी जानकारियां ऋणदाताओं की समिति के समक्ष पेश की जा सकें, जिससे कि वह समुचित जानकारी के आधार पर इस बारे में उपयुक्त निर्णय ले सकें।
बेहतर अनुपालन के लिए अन्य कदम उठाने के अलावा बैंकिंग क्षेत्र में सुधार और समाधान प्रक्रिया से अवांछनीय तत्वों को बाहर रखना भी सरकार के मौजूदा सुधारों का एक हिस्सा है। इसी तरह धनराशि के अन्यत्र उपयोग के लिए कॉरपोरेट ढांचे का दुरुपयोग रोकने हेतु डिफॉल्ट कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई भी सरकार के मौजूदा सुधार कार्यक्रम का एक हिस्सा है।
इससे औपचारिक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और ईमानदार कारोबारियों एवं उभरते उद्यमियों को विश्वसनीय एवं स्थिर नियामकीय माहौल में काम करने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
इस अध्यादेश के जरिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 की धारा 2, 5, 25, 30, 35 एवं 240 में संशोधन किए गए हैं और इसके साथ ही संहिता में 29ए तथा 235ए नामक नई धाराएं जोड़ी गई हैं।