सबगुरु न्यूज। रात को चौपड पाशे खेलते खेलते भगवान शिव और पार्वती में एक विवाद छिड़ गया, शंकर भोले नाथ रूठकर तपस्या की ओर जाने लगे। यह नजारा देख पार्वती जी ने भोले नाथ से कहा प्रभु ठहरो, मैं फिर कहती हूं कि इस जगत में माया ही बड़ी है और मैं साक्षात माया बनकर जगत को मोह में फंसाती हूं।
मैं ही बुद्धि को भ्रमित करा प्राणी की जीभ पर बैठ उसके मुख से अहंकारी बोलीं बनकर उसका पतन करवाती हूं तथा मैं ही राजा को रंक और रंक को राजा के पद पर बिठाती हूं। मैं सत्य ही कहती हूं। नाथ जो भी तुम्हारी भक्ति में लीन होकर भी झूठे अंहकार मे जीता है उसे मैं लंका में ही रावण की तरह खत्म कर देती हूं।
यह सुनकर भगवान शिव और ज्यादा नाराज हुए ओर बोले पार्वती अब तुम्हारे और मेरे बिल्कुल नहीं बन सकतीं, अब हम लम्बी तपस्या के लिए जा रहे हैं। यह कहकर शिव शंकर भोले नाथ कैलाश पर्वत की एक गुफा में गए और ध्यान लगाया तो एक सांवली सलोनी स्त्री उनके सामने आकर्षक नृत्य के जरिए भोले नाथ को रिझाने लगी।
शंकर भोले नाथ बोले हे सुन्दरी तुम कौन हो ओर क्या चाहतीं हो। तब वह स्त्री बोली बाबा मैं आपसे शादी करना चाहती हूं, वह भी इसी वक्त। शंकर बोले मेरे तो एक पत्नी है पार्वती। तब वह स्त्री बोली बाबा मुझे कोई ऐतराज नहीं।
भोले नाथ शंकर एकदम उस स्त्री के जाल में फंस गए ओर शादी कर ली। तब वह स्त्री बोली बाबा पहले मुझे अपने कंधे पर बैठा कर तीनों लोको का भ्रमण करवाओ तब मै आप को स्वीकार करूंगी।
भोले नाथ ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। तब वह स्त्री जाने लगी तो भोले नाथ ने कहा ठहरो ओर मेरे कंधे पर बैठो। वह स्त्री तुरंत भोले नाथ के कंधों पर बैठ कर त्रिलीकी में भ्रमण करने लगीं और जोर जोर से हंसने लगी।
शिव ने देखा तो उनके कंधों पर वह सांवली सलोनी स्त्री नहीं स्वयं पार्वती जी थी। तब पार्वती जी बोलीं, हे नाथ अब बताओ कि माया बड़ी है या ब्रह्म। तब शिव बोले हे पार्वती सृष्टि उत्पति में माया ही बड़ी है और प्रलय की स्थिति में ब्रह्म बडा है। दोनों में समझौता हो गया।
वायु पुराण की यह कथा बताती है कि दुनिया में जब कोई जीव आदमखोर बन जाता है और मानव को मानव नहीं समझता है तो यह माया उसे भ्रम जाल में फंसाकर एक निबल के हाथों से ही परास्त करा देती हैं।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू माया को प्रणाम कर और प्रेम से जन कल्याण के लिए आगे बढ़ तेरी हर मुश्किल को आसान हो जाएगी ओर सशक्त शत्रु भी परास्त हो जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल