सबगुरु न्यूज। वह पहाडों पर गया या मैदानों में, मंदिर गया या शमशान। चाहे अपनों के पास गया या दुश्मनों के। अंदर से वह डरा हुआ ही रहता था। क्योंकि जहां भी वह जाता वहां आधी रात को उसे चूड़ियों की खनकार ही सुनाई देती थीं।
इस आवाज से वह इतना डरा हुआ रहता था कि आवाज सुनते ही चिल्ला ऊठता और बचाओ बचाओ कहने लग जाता। उसे डर था की एक दिन यह आवाज उसका राज खोल देगी कि वह कौन है। यही सोच कर वह एक दिन घर से निकल गया और एक साधु के आश्रम में पहुंच गया।
साधु उसके मन की व्यथा समझ गए थे। उसे कहा कि तुम डरो मत। मैं तुम्हे जंगल के राजा शेर की खाल ओढा देता हूं, उसके बाद तुम सर्वत्र घूमते रहो और शेर की तरह दहाड़ते रहो चाहे कुछ भी हो। बस तुम दूसरों की बातें मत सुनना नहीं तो तुम्हारे भेद खुल जाएंगे कि तुम जंगल के राजा नहीं हो, तुमने एक गधे को ही शेर की खाल ओढा रखी है।
परमात्मा के दर्शन के लिए यदि जाओ तो ज्यादा भाव विभोर मत होना, अन्यथा भगवान शिव की तरह तुम्हारे राज खुल जाएंगे। गधा बोला कि हे साधु भगवान शिव का कौनसा राज़ खुला। तब साधु कहने लगे कि सुनो, भगवान कृष्ण जब रास लीला रचाते थे तब सभी गोपियां दैवी शक्तियां वहा रास नृत्य करने जाते थे।
भगवान शिव एक दिन हटकर बैठे कि पार्वती मैं भी रास नृत्य में चलूंगा लेकिन पार्वती जी ने कहा भोले नाथ वहा पुरूषों को जाना मना है। तब शिव बोले हम औरतो का वेश बना कर जाएंगे ओर हट करके शिव औरतों का भेष बनाकर पार्वती जी के साथ रास लीला में चले गए।
जब रास लीला शुरू हुई और श्री कृष्ण जी ने जब मोहिनी मुरली बजायी तो भगवान शिव अपनी सुध बुध भूल गए और परमात्मा में खो कर ऐसा नृत्य किया कि उनके औरतो वाले कपड़े हट गए, पूरे रास में भगवान भोले नाथ ही सभी को दिख गए। तब मुरलीधर मन मोहन भी मुरली बजाना भूल गए और श्री कृष्ण जी ओर शिव एक दूसरे मे विलीन हो गए। अपार आनंद उस रास मडंल में छा गया।
रास मंडल मे खनकी चूड़ियों की आवाज की बात से वह गधा डर गया। वह जहां भी जाता वहां आधी रात को वह सचेत हो जाता कि कहीं चूड़ियों की आवाज तो नहीं आ रही। एक दिन वह गधा रात के समय चौकन्ना होकर बैठा था, तभी एक-दम एक गधी की आवाज आई। बहुत दिन बाद अपने कुनबे की आवाज सुन गधा सब कुछ भूल गया और वह उस गधी के पास पहुंच गया और बोला आओ प्रिय हम भाग चले नहीं तो कहीं से चूड़ियों की आवाज खनक आ जाएंगी।
तब गधी ने कहा पहले ये शेर की खाल उतार नहीं तो जंगल का राजा शेर आ गया तो हम दोनों को ही मौत के घाट उतार देगा। गधा डर गया और शेर की खाल उतार कर गधी के साथ चल पडा, विचरण की ओर अपनी ही दुनिया में।
संत जन कहते हैं कि हे मानव तू अपने स्वाभाविक रूप से ही अपनी बात रख ना कि वक्त ओर परिस्थितियों के लाभ उठाने के लिए तो बहुरुपिया बन। नहीं तो तेरे असली अस्तित्व का भान हो जाएगा और तू सदा सदा के लिए अपनी अहमियत खो बैठेगा। इसलिए हे मानव तू अपना रूप एक मानव कल्याण वाला ही रख नही तो हर बार संघर्ष करता हुआ और रूप बदलता हुआ ही तू सदा के लिए निपट जाएगा।
सौजन्य : भंवरलाल