नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमरीका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम्स मैगजीन ने उन्हें एक बार फिर अपने कवर पेज पर जगह दी है।
मशहूर अमरीकी पत्रिका’ टाइम’ द्वारा इस बार लिए गए साक्षात्कार में मोदी ने कहा है कि धर्म और आतंकवाद को अलग-अलग करके देखना होगा ताकि कोई भी आतंकवादी धर्म का इस्तेमाल न कर सके।
उन्होंने कहा कि आतंकवादी की पहचान न उसके नाम से करनी चाहिए और न ही उसके समूह या संगठन से। हमें उनकी पहचान इससे भी नहीं करनी चाहिए कि वे दुनिया के किस हिस्से में सक्रिय हैं और कौन उनके पीडि़त हैं।
दरअसल समय के साथ -साथ ये नाम, जगह बदलते रहते हैं, जैसे आज आतकंवादी संगठन के रूप में तालिबान और इस्लामिक स्टेट का नाम है और कल किसी और संगठन का नाम होगा। आतंकवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट रूपरेखा बनाने की जरूरत है।
कई देश इसे कानून व्यवस्था जनित समस्या मानते हैं लेकिन वास्तव में यह मानवीय मूल्यों का संघर्ष है। टाइम पत्रिका ने कुछ दिन पहले मोदी के आवास पर उनका यह साक्षात्कार लिया, जिसमें उन्होंने कई संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखी।
पत्रिका ने अपने कवर पेज पर प्रधानमंत्री की तस्वीर को एक बार फिर छापते हुए लिखा है-‘व्हाई मोदी मैटर्स’। इससे पहले टाइम्स मैगजीन मोदी को 26 मार्च 2012 के संस्करण में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कवर पेज पर जगह दे चुकी है।
टाइम्स मैगजीन ने उस समय अपने कवर पेज पर मोदी की तस्वीर पर मोदी मीन्स बिजनेस बट कैन ही लीड इंडिया शीर्षक लगाया था। टाइम्स ने उस समय एक लेख में मोदी की गुजरात की विकास के लिए प्रशंसा की थी। इस लेख का शीर्षक ब्वाय फ्रॉम द बैकयार्ड था। पिछले वर्ष मोदी टाइम्स मैगजीन के पर्सन ऑफ दी की इयर की दौड़ में भी शामिल थे। हालांकि वह टाइम्स मैगजीन के पर्सन ऑफ दी इयर नहीं बन पाए थे।
मोदी ने भाजपा के कुछ नेताओं की अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणियों पर सख्त कदम उठाने की वकालत करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ जब भी किसी ने नकारात्मक टिप्पणी की या कोई कदम उठाया तो उनकी सरकार उससे सख्ती से पेश आई। केंद्र सरकार के लिए एक ही पवित्र पुस्तक है – भारत का संविधान। देश की एकता और अखंडता पहली प्राथमिकता है।
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत के संदर्भ में दिए गए बयान पर टिप्पणी करने के लिए पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने भारत की शांतिप्रियता के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर भारत के इतिहास का विश्लेषण किया जाएगा, तो किसी को एक भी ऐसी घटना नहीं मिलेगी, जहां इस बात का जिक्र हो कि भारत ने दूसरे देशों पर आक्रमण किया था। इसी तरह हमारा इतिहास यह भी दर्शाता है कि हमने कभी समुदाय या धर्म के आधार भी युद्ध नहीं किया।
इसी वजह से सभी धर्माें के प्रति समभाव हमारे खून में और हमारी सभ्यता में है। साथ मिलकर काम करने और सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की भावना हमारे अंदर बसी है। ङ्क्षहदू धर्म में आस्था के मसले पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए मोदी ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश को उद्धृत करते हुए कहा कि न्यायालय ने ङ्क्षहदू धर्म को बड़ी खूबसूरती के साथ परिभाषित किया है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वास्तव में हिदू कोई धर्म नहीं है बल्कि जीवन जीने का तरीका है। खुद पर लगाए जा रहे तानाशाही के आरोपों का जवाब देते हुए मोदी ने कहा कि इस देश को चलाने के लिए तानाशाही की जरूरत नहीं है।
इस देश को चलाने के लिए तानाशाही सोच की भी जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर आप मुझसे यह पूछेंगे कि क्या इस देश को एक ऐसे शक्तिशाली व्यक्तित्व की जरूरत है जो सत्ता का केंद्रीकरण करने के पक्ष में है, तो मैं कहूंगा कि नहीं , हमें ऐसे व्यक्ति की जरूरत नहीं है। भारत एक लोकतंत्र है। यह हमारे डीएनए में है।
अगर आप मुझसे लोकतांत्रित मूल्यों, धन, ताकत और प्रसिद्धि के बीच चुनने को कहेंगे तो मैं लोकतांत्रिक मूल्य को ही चुनूंगा। सरकार चलाने में आ रही शुरूआती बाधाओं के बारे में मोदी ने कहा कि मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि अलग-अलग विभाग अलग-अलग तरीके से काम कर रहे थे, मानो वे सब अपने आप में एक सरकार हों।
मेरी कोशिश यह रही है कि मैं इन विभागों के बीच की दीवारों को तोड़ सकूं ताकि समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक कोशिश की जा सके। अमरीका, चीन आदि के साथ द्विपक्षीय संबंधों के बारे में उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशक से भारत और चीन सीमा पर तकरीबन शांति रही है।
दोनों देश आर्थिक सहयोग के मोर्चे पर परिपक्वता दिखा रहे हैं। उन्होंने अमरीका के संबंध में कहा कि यह मुद्दा नहीं है कि भारत अमरीका के लिए क्या कर सकता है। मुद्दा यह भी नहीं है कि अमरीका हमारे लिए क्या कर सकता है। इस रिश्ते को इस तरह से देखना चाहिए कि भारत और अमरीका एक साथ दुनिया के लिए क्या कर सकते हैं…पूरी दुनिया में लोकतंत्र को किस तरह मजबूत कर सकते हैं।
उन्होंने गरीबी को अपना प्रेरणा स्रोत बताते हुए कहा कि उनके लिए गरीबी जीवन की सबसे पहली प्रेरणा रही है। उन्होंने कहा कि गरीबी देखकर ही मैंने संकल्प किया था कि मैं अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीवन जिऊंगा। मैं बहुत गरीब परिवार में पैदा हुआ। बचपन में मैं रेल डिब्बों में चाय बेचता था। हमारा पेट भरने के लिए मेरी मां बर्तन मांजती थीं और दूसरों के घरों में काम करती थीं। मैंने गरीबी को बहुत करीब से देखा है। मैं उसी की पैदाइश हूं।