Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
तू काई जाणे बावली बडा घरां की रीत - Sabguru News
Home Latest news तू काई जाणे बावली बडा घरां की रीत

तू काई जाणे बावली बडा घरां की रीत

0
तू काई जाणे बावली बडा घरां की रीत

सबगुरु न्यूज। एक संत उलझ रहे थे अपने आप से। आखिर ये राजा अपने पद की गरिमा के अनुसार कार्य को अंजाम क्यों नहीं दे रहा है। संत राजा के बहुत पुराने मित्र थे। राजा दयालु वीर और साहसी था। एक सैनिक होते हुए वह राजा के पद पर बैठा था। उसकी वफादारी और वीरता के लिए उसके स्वामी राजा ने उसे राज गद्दी सौपी थी। राजा दिल से संत था और संत दिल से राजा की तरह ही व्यवहार करता था।

एक दिन संत के पास दूसरे राज्य के एक संत आए ओर कहने लगे कि हे संत जी आपका राजा तो वास्तव में ही संत है वह सभी से एक जैसा व्यवहार करते हैं। संत जी अपने मित्र राजा की प्रशंसा सुनकर नाराज़ हुए ओर बोले हे संत जी ये मेरा मित्र राजा बनने लायक नहीं है क्योंकि ये ना तो राजसी ठाट-बाट से रहता है और अपने पद के अनुरूप अपनी अहमियत दिखाता है।

मेहमान संत बोले संत जी आपका दृष्टिकोण मुझे उचित नहीं लगता। कारण एक राज नृत्यांगना और नगर सेठ भी राजसी ठाट-बाट और अहमियत से रहते है पर ये दोनों ही अपना जीवन एक रंगमंच के कलाकार की तरह जीते हैं और अपनी वास्तविक को छुपा लेते हैं। लेकिन जब वे अकेले में होते हैं तो अपने आप से ही उलझ जाते है जैसे आप अपने मित्र राजा के लिए उलझ रहे हो।

संत जी एक दम खिन्न हुए ओर बोले कि नहीं संत जी ये राजा बावला है और बडे घरों की रीत को नहीं जानता। आसानी से सबको तवज्जों दे देता है और अपनी अहमियत को नहीं बताता है। मेहमान संत जी को हंसी आई और बोले कि हे संत जी ये आपकी आत्मा नहीं आपका मन बोल रहा है।

हे संत जी! ये मन लोभी और लालची होता है जो सदैव शरीर में बैठी आत्मा की आवाज नहीं सुनता और वह आत्मा को कहता है कि हे आत्मा तू मेरे कहने के अनुसार कार्य कर नहीं तो ये जमाना तुझे अहमियत नहीं देगा, तू राजा बनकर भी एक आम आदमी की तरह ही रह जाएगा। लोग तुझे छोटे घर का ही मानने लग जाएंगे।

हे संत जी! आत्मा तो सदा परमात्मा के घर से आती हैं और उसका रिवाज बहुत बडा है तथा परमात्मा से बडा घर इस दुनिया में दूसरा नहीं है। उसके घर में अहमियत नहीं तवज्जों है। अंहकार नहीं, नम्रता है। लूट कपट झूठ फरेब लालच नहीं, जन कल्याण है। दिखावा नहीं हकीकत है। आसमां की झूठी उडान नहीं जमीनी शान है। वह टोडता नहीं बल्कि जोडता है। वह लुटेरों का सरदार नहीं, गरीबों का मसीहा है। वह सहज ही पहचाना जा सकता है अपने त्याग से। वह सहज ही मिल जाता है सच्ची लो लगाने में। वहां घृणा और नफ़रत नहीं सहयोग व प्रेम है। यही बडे घरों की रीत होती हैं।

हे संत जी मानव द्वारा बनाई बडे घरों की रीत तो ऊंच नीच का भेद कर एक दिन विद्रोह का कारण बनती हैं पर परमात्मा द्वारा बनाई रीत जीते जी ही मोक्ष दिलाती है। महात्मा बुद्ध वास्तव में बडे घरों की रीत को पहचान गए थे। इसी कारण राज पाट को दुनिया की रीत मानकर छोड़ गए और जीते जी मोक्ष को पा गए। हे संत जी! वास्तव में तुम्हारा मन बडे घरों की रीत को नहीं जानता जो परमात्मा ने बनाई। तुम मानव द्वारा बनाई बडे घरों की रीत में रमे हो जो आज अपने अस्तित्व में है कल नहीं होगी।

पद, प्रतिष्ठा और उनसे जुड़ी भूमिका एक ऐसी संस्कृति का निर्माण करतीं हैं जहां मानव और मानव के बीच भेद भाव शुरू हो जाता है और वह सभी व्यवस्थाओं का अंग बन जातीं हैं। सदियों से ऐसा ही होता आया है और ऐसा होता ही रहेगा। इन दोनों में जब संतुलन बिगड़ जाता है तब विद्रोह का जन्म हो जाता है और चारों तरफ असंतोष ही असंतोष फैल जाता है। भेदभाव वाले समाज का सर्वत्र निर्माण हो जाता है। यह स्थितिया नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू गुमराह मत हो और करतार के मार्ग को देख कर मानवता के मूल्य को पहचान यही बड़े घरों की रीत होती है जो मानव के लिए परमात्मा बनाता है।

सौजन्य : भंवरलाल