नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जनादेश मिलने के बावजूद उन्होने लोकलुभावन योजनाएं घोषित कर जनता को भ्रमित करने के आसान रास्ते के बजाय सरकारी मशीनरी को लामबंद करने और व्यवस्था में आई कई त्रुटियों और खराबियों को दूर करने का कठिन रास्ता अपनाया जिससे कि देश को लंबे समय तक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष शासन के रूप में लाभ दिया जा सके।
अपनी सरकार के एक साल के पूरा होने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होने अपनी कार्यप्रणाली में कभी आसान रास्ते का चुनाव नही किया चाहे वह कितना ही लोकलुभावन क्यों न रहा हो। उन्होंने जानबूझ कर लोकलुभावन रास्ता नहीं चुन कर त्रुटिपूर्ण सरकारी मशीनरी को ठीक करने के लिए अधिक कठिन मार्ग को अपनाया।
उन्होने कहा कि उनके समक्ष दूसरा विकल्प यह था कि जनादेश का उपयोग करते हुए नई लोकलुभावन योजनाएं घोषित की जाएं और जनता को भ्रमित करने के लिए मीडिया के जरिए ऐसी घोषणाओं की जाए। यह रास्ता आसान भी था और लोग इसके आदी भी हैं।
मोदी ने कहा कि उन्होंने लोकलुभावन नहीं चुना और इसके बजाय शांत और व्यवस्थित ढंग से त्रुटिपूर्ण सरकारी मशीनरी को ठीक करने का अधिक कठिन मार्ग अपनाया। अगर वे लोकलुभावन विकल्प चुने होते तो जनता द्वारा जताए गए विश्वास का उल्लंघन होता।
सरकार के काम करने के तरीकों को बदले जाने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वे सरकारी सेवकों को यह याद दिलाने का प्रयास किये कि वे जन सेवक हैं और केन्द्र सरकार के अधिकारियों में अनुशासन को बहाल किया।
उन्होंने कहा कि वह एक छोटा सा काम किये, ऐसा जो बाहर से देखने में छोटा लगता है। वे नियमित रूप से चाय पर अधिकारियों से बातचीत करते हैं, यही उनके काम काज के तरीके का हिस्सा है। मोदी ने दार्शनिक अंदाज में कहा कि वह महसूस करते हैं कि देश तभी प्रगति करेगा जब वे एक टीम की तरह काम करेंगे।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक टीम हैं। कैबिनेट मंत्री और राज्यों के मंत्री अन्य टीम हैं। केन्द्र और राज्यों के लोकसेवक भी एक अन्य टीम हैं। यही एक तरीका है जब देश को सफलतापूर्वक विकसित किया जा सकता है। इस दिशा में कदम उठाते हुए योजना आयोग को समाप्त किया और उसकी जगह नीति आयोग गठित किया जिसमें राज्य बराबर के पार्टनर हैं।