नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को अपने एक फैसले में कहा कि अविवाहित मां अपने बच्चे की कानूनी संरक्षक बन सकती है। ऐसा करने के लिए उसे बच्चे के पिता की मर्जी पर आश्रित होने की भी जरूरत नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश विक्रमजीत सेन की अध्यक्षता वाली बेंच ने न्यायालय के अभिभावक संबंधी पूर्व के आदेश को वापस लेते हुए पिता को नोटिस जारी किये बिना अविवाहित महिला की संरक्षण लेने संबंधी याचिका की फिर से जांच करने को कहा।
न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय सहित निचली अदालतों के इस संबंध में लिये गये फैसले बच्चे के भले पर विचार किये बिना लिये गये।
न्यायालय का यह फैसला सरकार में राजपत्रित अधिकारी महिला की याचिका पर आया है। याचिका में महिला ने संरक्षकता याचिका के लिए पिता की अनुमति की अनिवार्यता को चुनौती दी थी।
आमतौर पर ऐसे मामलों में पिता की सहमति लेने के लिए उसे एक नोटिस भेजा जाता है। याचिकाकर्ता के मुताबिक मुश्किल से दो माह साथ रहे शख्स को पता भी नहीं है कि उसका कोई बच्चा है।