नई दिल्ली। व्यापम पर चौतरफा घिरे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब संघ की शरण मे है। कल चौहान अपने दिल्ली के एकदिवसीय दौरे मे देर शाम दिल्ली स्थित संघ कार्यालय केशवकुंज पहुँचे और संघ मे भाजपा के मार्गदर्शक और सहसरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल से मुलाकात की।
इससे पहले भी वे संघ के वरिष्ठ अधिकारियो से चर्चा कर चुके है। ऐसा माना जाता है, कि घंटो चली इस बैठक मे व्यापम पर सरकार द्वारा किये वर्तमान प्रगति की उन्होने समीक्षा की।
इससे पहले श्री चौहान ने व्यापम की सीबीआई जांच की घोषणा करते हुए पत्रकार अक्षय सिंह के परिजनों से मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री ने अक्षय सिंह के परिवार के सदस्य को नौकरी और आर्थिक मदद देने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन परिवार ने सीएम के प्रस्ताव को ठुकराते हुए साफ कह दिया की अक्षय की मौत की निपष्क्ष जांच हो। हमें मध्यप्रदेश सरकार से आर्थिक मदद नहीं चाहिए।
भाजपा के प्रवक्ता दिल्ली और मध्य प्रदेश में सक्रिय हो गए हैं। अब कहा जा रहा है कि सारी मांगें मान ली गई हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सीबीआई की जांच व्यापमं में व्याप्त घोटाले का सबसे बड़ा निदान है…? क्या इसकी कोई राजनैतिक जिम्मेदारी नहीं थी।
यह तो शिवराज के साथ नाइंसाफी होती कि तीन एक जैसे मामलों में दो लोगों को तो अभयदान मिला, लेकिन चौहान के हाथ से सत्ता छीन ली जाती। प्रधानमंत्री को जनता से किए वादों से ज्यादा यह बात खलती थी कि शिवराज-वसुंधरा और सुषमा स्वराज तीनों ने कभी पूरे मन से मोदी जी को नेता नहीं माना। खासकार सुषमा और शिवराज तो काफी देर तक मोर्चा संभाले रहे। वसुंधरा को पीएम ने एक कड़ा संदेश उस समय दिया, जब उनके बेहद योग्य और राजसी अंदाज वाले बेटे को लाख मनुहार के बाद भी अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।
सुषमा और शिवराज ने पीएम मोदी की ताजपोशी के बाद हथियार डाल दिए। सुषमा ने तो खामोशी की चादर ओढ़ ली। शिवराज चुपचाप व्यापमं का विस्तार करते रहे और प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर चले गए।