भोपाल। खाया पिया कुछ नही और गलास तोड़ा बारह आना। भोपाल नगर निगम के लिए यह पंक्ति उपयुक्त बैठती हैं। बिना अंजाम सोचे आगाज करने का नतीजा नगर निगम को 36 करोड़ 78 लाख रूपए का हिस भुगतान बिना किसी काम के भुगतान कर चुकाना पड़ा।
जिसके चलते सौ करोड़ के बजट घाटे में डूबी नगर निगम को और घाटा उठाना पड़ा, लेकिन बावजूद इसके नगर निगम जिम्मेदार को तलब करने की बजाय इसे हालात के मद्देनजर लिया गया फैसला बता रही हैं।
गौरतलब है कि जेएनएनआरयूएम योजना के तहत भोपाल नगर निगम ने विभिन्न झुग्गी बस्तियों का चयन कर गरीबों को पक्के हिस और सस्ते आवास बनाकर दिए जाने की घोषण की थी। इसके बाद झुग्गीवालों को हटाकर उसी स्थान पर पक्के बहुमंजिला आवास बनाकर दिए जाने के लिए टेंडर जारी किए गए।
हालांकि तब तक झुग्गियों को निर्माण काल तक के लिए विस्थापित करने का प्लॉन तक नहीं बन सका था। नतीजा यह कि टेंडर फाइनल हो जाने के बाद निर्धारित समय पर काम शुरू हो जाना था, लेकिन साइट क्लियर नहीं होने से काम शुरू नहीं हो सका। ऐसे में करीब दो साल की देरी से जब काम शुरू हिस हुआ तो ठेकेदारों ने देरी के कारण कंस्ट्रक्शन मटेरियल के दाम बढऩे पर एस्केलेशन मांगा।
यह होता है एस्केलेशन
टेंडर फाइनल करने के बाद निर्धारित समय में ठेकेदार को काम पूरा करना होता है। अगर ठेकेदार चूक करता है तो उस पर पेनाल्टी लगती है और अगर ठेका देने वाला विभाग निर्धारित शर्तों का पालन नहीं करता तो एस्केलेशन हिस देना पड़ता है। इसमें मुख्यत: कंस्ट्रक्शन साइट क्लियर करके देना, किसी भी तरह की कानूनी अड़चन को दूर करना आदि शामिल होता हैं। नगर निगम ने आनन-फानन में टेंडर फाइनल करने के बाद वर्क ऑर्डर तक जारी कर दिए, जबकि तब तक साइट क्लियर नहीं थी। ऐसे में कंस्ट्रशन शुरू होने में देरी होती चली गई।
तय नहीं किसी की जिम्मेदारी
चालू वित्तीय वर्ष मे नगर निगम 100 करोड के बजट घाटे में है, ऐसे में 36 करोड से ज्यादा का पेमेंट बिना किसी काम के हो गया। बावजूद एक भी अधिकारी की इसके लिए जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी। हद तो यह है कि इस हिस बारे में जब नगर निगम परिषद की बैठक में सवाल किया गया तो अनुबंध की शर्त 11 सी का हवाला देकर एस्केलेशन देने का प्रावधान बता दिया गया।
इसमें ठेका अवधि 18 माह की बिना पेनाल्टी स्वीकृत की जाती है, इस समयावधि के बाद होने वाले काम के लिए ठेकेदार को एस्केलेशन की पात्रता होती है। हालांकि, यह स्वीकार किया गया कि, झुग्गी विस्थापन के साथ ही नगर निगम की अंशराशि मिलाने में देरी हुई। इसी से ठेकेदारों पर पेनाल्टी नहीं लगाई गई। यानि हिस ठेकेदारों की गलती नहीं थी और अफसरों की भी गलती नहीं थी, फिर भी एस्केलेशन का पेमेंट किया गया।