नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का सोमवार शाम को दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया। जिस समय उन्हें दौरा पड़ा उस समय वे आईआईएम शिलांग में छात्रों को संबोधित कर रहे थे।
उन्हें आनन फानन अस्पताल ले जाया गया। लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। शाम करीब 7.45 पर उन्होंने अंतिम सांस ली। साल 1931 को जन्मे कलाम ७ भाई बहन थे।
मिसाइलमैन के नाम से मशहूर डॉ. कलाम 25 जुलाई 2002 को देश के 11वें राष्ट्रपति बने थे। उन्हें वर्ष 1981 में पद्मभूषण, 1990 में पद्मविभूषण और 1997 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया था। वह ऐसे विशिष्ट वैज्ञानिक थे, जिन्हें 30 विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। वह 1999 से 2001 तक सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे और 1998 के परमाणु परीक्षणों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
डॉ. कलाम वायु सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे। लेकिन इस इच्छा के पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद विभाग में 1958 में तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर वहाँ पहले ही साल में एक पराध्वनिक लक्ष्यभेदी विमान की डिजाइन तैयार करके अपने स्वर्णिम सफर की शुरूआत की।
डॉ. कलाम के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वह 1962 में ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़े। यहां पर उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्होंने यहाँ पर आम आदमी से लेकर सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरूआत की। इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से ‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ की शुरूआत हुई डॉ. कलाम की योग्यताओं को ²ष्टिगत रखते हुए उन्हें इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया।
उन्होंने अपनी अदभुुत प्रतिभा के बल पर इस योजना को भलीभांति अंजाम तक पहुंचाया तथा जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया। डॉ. कलाम ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वी.एस. अरूणाचलम के मार्गदर्शन में ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की शुरूआत की।
इस योजना के अंतर्गत ‘त्रिशूल’ (नीची उड़ान भरने वाले हेलाकॉप्टरों, विमानों तथा विमानभेदी मिसाइलों को निशाना बनाने में सक्षम), ‘पृथ्वी’ (जमीन से जमीन पर मार करने वाली, 150 किमी तक अचूक निशाना लगाने वाली हल्कीं मिसाइल), ‘आकाश’ (15 सेकंड में 25 किमी तक जमीन से हवा में मार करने वाली यह सुपरसोनिक मिसाइल एक साथ चार लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम), ‘नाग’ (हवा से जमीन पर अचूक मार करने वाली टैंक भेदी मिसाइल), ‘अग्नि’ (बेहद उच्च तापमान पर भी ‘कूल’ रहने वाली 5000 किमी0 तक मार करने वाली मिसाइल) एवं ‘ब्रह्मोस’ (रूस से साथ संयुक्त् रूप से विकसित मिसाइल, ध्व़नि से भी तेज चलने तथा धरती, आसमान और समुद्र में मार करने में सक्षम) मिसाइलें विकसित हुईं।
इन मिसाइलों के सफल प्रेक्षण ने भारत को उन देशों की कतार में ला खड़ा किया, जो उन्नत प्रौद्योगिकी एवं शस्त्र प्रणाली से सम्पन्न हैं। रक्षा क्षेत्र में विकास की यह गति इसी प्रकार बनी रहे, इसके लिए डॉ. कलाम ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) का विस्तार करते हुए आरसीआई नामक एक उन्नत अनुसंधान केन्द्र की स्थापना भी की। डॉ. कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा डी.आर.डी.ओ. के सचिव के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कीं।
उन्होंने भारत को ‘सुपर पॉवर’ बनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण में मुख्य भूमिका निभाई। इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की। डॉ. कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार बने। इस दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया गया। उन्होंने नवम्बर 2001 में प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार का पद छोडऩे के बाद अन्ना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कीं।
उन्होंने अपनी सोच को अमल में लाने के लिए इस देश के बच्चों और युवाओं को जागरुक करने का बीड़ा लिया। इस हेतु उन्होंने निश्चय किया कि वे एक लाख विद्यार्थियों से मिलेंगे और उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित करने का कार्य करेंगे। इस बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने उनकी योग्यता से प्रभावित होकर उन्हें 2002 में राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का उम्मीदवार बनाया और वह व्यापक समर्थन से 25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए।
वह 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे। उन्होंने देश को एक विकसित एवं महाशक्तिशाली राष्ट्र बनाने का स्वप्न देखा और अपनी कई रचनाओं में इसकी कल्पना को प्रस्तुत किया। उनकी पुस्तक ‘इण्डिया 2020Ó में उनका देश के विकास का समग्र ²ष्टिकोण देखा जा सकता है। उनका कहना था कि भारत को कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, ऊर्जा, शिक्षा व स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी, परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास पर ध्यान देना होगा।
उनकी जीवनी ‘विंग्स ऑफ फायर’ भारतीय युवाओं और बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इनके अतिरिक्त उनकी अन्य चर्चित पुस्तकें-गाइडिंग सोल्स: डायलॉग्स ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ, इग्नाइटेड माइंडस: अनलीशिंग दा पॉवर विदीन इंडिया, एनविजनिंग अन एम्पावर्ड नेशन: टेक्नोलॉजी फॉर सोसायटल ट्रांसफारमेशन, डेवलपमेंट्स इन फ्ल्यूड मैकेनिक्सि एण्ड स्पेस टेक्नालॉजी, 2020: ए विजन फॉर दा न्यू मिलेनियम आदि हैं।
डॉ. कलाम ने तमिल भाषा में कविताएं भी लिखी हैं, जो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी कविताओं का एक संग्रह ‘दा लाइफ ट्री’ के नाम से अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है। उन्हें राजनीति में आने से पहले ही देश के सबसे बड़े सम्मानों से नवाजा जा चुका था। उन्हें 1997 में राष्ट्रीय एकता के लिए इन्दिरा गांधी पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं ‘भारत रत्न’ सम्मान (1997) से भी विभूषित किया गया।
वह भारत के ऐसे पहले वैज्ञानिक थे, जो देश के राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति बनने से ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही साथ वे देश के इकलौते राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने आजन्म अविवाहित रहकर देश की सेवा की। डॉ. अब्दुल कलाम सादा जीवन जीने वाले तथा उच्च विचार धारण करने वाले व्यक्ति थे। वह अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद अनुशासनप्रिय रहे। वह पूर्णत: शाकाहारी थे और मद्यपान आदि आदतों से मुक्त रहे। वह अपने इन्हीं गुणों के कारण सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों की नजर में महान आदर्श के रूप में स्वीकार्य रहे। देश की आने वाली अनेक नस्लें उनके महान व्यक्तित्व से प्रेरणा ग्रहण करती रहेंगी।