नई दिल्ली। देश की न्यायिक प्रक्रिया के इतिहास में दर्ज हो चुकी 29 और 30 जुलाई की लगभग पूरी रात याकूब मेमन मामले की सुनवाई में फंसे रहे न्यायाधीश दीपक मिश्रा गुरुवार को अपनी खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई के लिए अन्य दिनों की तरह बिल्कुल समय पर पहुंच गए।
याकूब मेमन की फांसी टलवाने के लिए गुरुवार रात वकीलों के एक दल की कवायद के बाद न्यायाधीश मिश्रा, न्यायाधीश प्रफुल्ल चंद पंत और न्यायाधीश अमिताभ रॉय की खंडपीठ ने आधी रात को इतिहास रचते हुए खुली अदालत में सुनवाई शुरू की। अदालत परिसर में पहली बार रात में टेलीविजन कैमरे किसी सुनवाई की कवरेज के लिए पंक्तिबद्ध खड़े दिखाई दिए।
कैमरों की फ्लैश लाइटें और जजों, वकीलों एवं अन्य अधिकारियों की गाड़यिों की हेडलैंपों का तेज प्रकाश शीर्ष अदालत में फैली मद्धिम रोशनी को चीरता नजर आया। न्यायाधीश मिश्रा ने जब फैसला सुनाया तब बाहर सुबह का ओजास फैल चुका था, अंधेरा लगभग छंट चुका था। चिड़यिों के चहकने की आवाज से भी सुबह का अहसास होने लगा था।
बाद में तीनों न्यायाधीश अपने-अपने आवास के लिए रवाना हो चुके थे और पूरे देश की नजर अब नागपुर जेल में फांसी की कार्रवाई की ओर लग गई थी। इधर, न्यायालय की घड़ी ने जैसे ही साढ़े दस बजाया, न्यायाधीश मिश्रा अदालत संख्या चार में हाजिर हो गए।
उनके चेहरे पर रतजगा की थकान का नामोनिशान नहीं था। वह पूरी तरह तरोताजा नजर आ रहे थे। न्यायपालिका ने श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को दहलाने के दोषी आतंकवादी को भी आधी रात को पूरी तसल्ली से सुना और न्याय के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की।