जगदलपुर। दोस्ती का पर्व फ्रैंडशिप डे धूम-धाम से मनाया गया। इस दौरान मित्रों ने जहां एक दूसरे को ताउम्र दोस्ती निभाने का वादा किया, वहीं उन्हें उपहारों का आदान-प्रदान भी हुआ। शहर के आस-पास के दर्शनीय स्थल मित्र-मण्डलियों से गुलजार रहे।
जमकर हुई मौज मस्ती
शहर के आस-पास के दर्शनीय स्थलों में लोगों का जमावड़ा लगा रहा। यहां उन्होंने अपने मित्रों के साथ दिवस मनाया और जमकर मौज-मस्ती की, कई मित्रों ने जहां फिल्म देखी, वहीं चित्रकोट, तीरथगढ़ सहित अन्य स्थानों पर भी लोग पहुंच। दूसरी ओर गुलाब व उपहार भेंटकर दोस्ती निभाने का सिलसिला देर शाम तक जारी रहा।
युवाओं ने इसे साल का सबसे हसीन दिन बताया। शहर के युवा सिद्धांत जैन ने कहा कि दोस्ती एक अहसास होता है, जिसे एक सच्चा दोस्त ही समझ सकता है। इस दिन अपने सच्चे दोस्त से ताउम्र दोस्ती निभाने का वादा करने का मौका नहीं चूकना चाहिए। एक व्यक्ति के जीवन में दोस्त का सबसे अहम स्थान होता है। इसलिये कोशिश करनी चाहिये कि अपने मित्रों के साथ ईमानदार रहें और उनसे दोस्ती का वादा निभाए।
संदेश देने आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल
आधुनिक तकनीक ने फ्रैंडशिप डे को और अधिक आसान कर दिया। सुबह होते ही लोगों ने व्हाट्स एप व फेसबुक पर बधाई देना शुरू कर दिया। इसके साथ ही बड़े ही करीने से सजे मैसेजों की इस दिन भरमार रही। एसएमएस का दौर अब खत्म हो चुका है और लोग दिनभर इन सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर जमे रहे। व्यस्तताओं के बावजूद भी लोगों में फ्रेंडशिप डे को लेकर उत्साह में कोई कमी नहीं देखी गयी। पूरे उल्लास के साथ युवाओं ने इस दिन को मनाया और इसे यादगार बनाने सारा दिन लोग अपने मित्रों के साथ रहे।
छत्तीसगढ़ में बदना से होते हैं रिश्ते गाढ़े
छत्तीसगढ़ में मितान बदने की परंपरा है जिसे आजीवन जान देकर भी निभाया जाता है। इसी तरह उड़ीसा में भी बदना के रूप में मित्रता का बंधन सालों साल बाधे जाने की परंपरा है। मितान बदने की परंपरा ही आधुनिक समय में मित्रता दिवस के रूप में मनाई जा रही है। दो लोगों एवं परिवारों के मध्य मित्र भाव की अनूठी परंपरा बंधना है।
बालाजी टेम्पल के अध्यक्ष कृष्णाराव नायडू ने बताया कि छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा सहित बस्तर में भी यह प्रथा बालीफूल, भोजली, मीत, मितान, महाप्रसाद, तुलसी, तथा दिवना के रूप में प्रचलित है। देवगुड़ी और जगार स्थल पर परस्पर एक दूसरे को दिवना या तुलसी का पत्ता देकर ईश्वर को साक्षी मानकर बदना बदा जाता है। वहीं युवक युवती भी भोजली तथा बालीफूल के रूप में मित्रता के सूत्र में बंधते हैं।
परंपरा के अनुसार बदना बदने वाले परिवारों के संबंध में हमेशा के लिए गाढ़े तथा पारिवारिक हो जाते हैं। देवी देवताओं से मन्नत पूरी होने के लिए भी बदना रखे जाने का रिवाज है। घर के किसी सदस्य अथवा मवेशी के स्वास्थ्य खराब हो जाने तथा अन्य किसी आपत्ति से बचने के लिए आदिवासी अपने ईष्ट देवताओं को बली देने के लिए बदना बदते हैं। आधुनिक समय में बच्चे तथा युवक-युवतियां इसे धूमधाम के साथ फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाते हैं।