चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन को करारा झटका देते हुए करोड़ों रुपए के अवैध बीएसएनएल टेलीफोन एक्सचेंज मामले में उनकी अंतरिम जमानत रद्द कर दी और उन्हें तीन दिन के अंदर सीबीआई के समक्ष समर्पण करने का आदेश दिया है।
न्यायाधीश एस वैद्यनाथन ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) की याचिका पर सुनवाई के दौरान मारन की जमानत रद्द कर दी। सीबीआई ने अदालत में याचिका दायर कर मारन की जमानत रद्द करने की मांग की थी। सीबीआई ने कहा था कि आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है। अदालत ने कहा कि जमानत रद्द करने के आदेश की प्रति सोमवार को सीबीआई को दी जाए जबकि मारन को तीन दिन के अंदर जांच एजेंसी के समक्ष समर्पण करना होगा।
सीबीआई ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि मारन जानबूझकर सूचनाओं को छिपा रहे हैं और उसने अदालत से उनकी जमानत रद्द करने की मांग की ताकि इस मामले में पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में लिया जा सके। सीबीआई ने दलील दी कि लगातार पूछताछ के बावजूद आरोपी ने जांच अधिकारी के समक्ष जानबूझकर कोई भी सूचना नहीं दी जिसके बारे में उसे विशेष रूप से पता था।
न्यायाधीश सुबैया ने 30 जुलाई को मारन को छह सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत दी थी। मारन को नई दिल्ली में सीबीआई द्वारा पूछताछ के बाद जमानत दी गई। साथ ही अदालत ने कहा था कि अगर मारन जांच में सहयोग न करें तो सीबीआई उनकी जमानत रद्द कराने को लेकर याचिका दायर कर सकती है जिसके बाद सीबीआई ने याचिका दायर की।
ऐसा आरोप है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग) सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान दूरसंचार मंत्री रहते हुए मारन ने चेन्नई में अपने घर पर अवैध टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया। सीबीआई ने नई दिल्ली में तीन दिन तक लगातार मारन से पूछताछ की।
मारन के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने अपने घर पर 300 से ज्यादा टेलीफोन लाइन स्थापित की और उसे अपने भाई कलानिधि मारन के मालिकाना हक वाले सन टीवी के कार्यालय से जोड़ा। सीबीआई ने अक्टूबर 2013 में दर्ज कराई गई एफआईआर में मारन और बीएसएनएल के वरिष्ठ अधिकारियों को नामजद कराया।