Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
पाकिस्तान की सेना ने बताई नवाज शरीफ की औकात - Sabguru News
Home World Asia News पाकिस्तान की सेना ने बताई नवाज शरीफ की औकात

पाकिस्तान की सेना ने बताई नवाज शरीफ की औकात

0
पाकिस्तान की सेना ने बताई नवाज शरीफ की औकात
NSA level talks off after war of words
NSA level talks off after war of words
NSA level talks off after war of words

आन्तरिक प्रजातंत्र और वैश्विक जिम्मेदारी के धरातल पर पाकिस्तान से कोई तुलना नहीं हो सकती। भारत में प्रजातंत्र वास्तविक और सम्पूर्ण रूप से स्थापित है, वहीं पाकिस्तान की जम्हूरियत दिखावा मात्र है।

इसके अलावा उसकी पहचान आतंकी मुल्क के रूप में बन चुकी है। जहां आतंकी संगठनों को खुली पनाह मिलती है। विश्व में चलने वाली प्रायः सभी आतंकी गतिविधियों के तार किसी न किसी रूप में पाकिस्तान से जुड़े रहते हैं।
पाकिस्तान की यह हकीकत एक बार फिर उजागर हुई। कोई जिम्मेदार मुल्क होता अपने निर्वाचित प्रधानमंत्री द्वारा किये गये अच्छे वादे के अनुरूप आगे बढ़ता। कुछ दिन पहले ही उफा में नवाज शरीफ ने अपने भरतीय समकक्ष से वादा किया था कि पाकिस्तान सीमा पर संघर्ष विराम कायम रखेगा। इसके मद्देनजर दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलहकारों की वार्ता होगी।

वस्तुतः इसका प्रस्ताव नरेन्द्र मोदी ने किया था। यह भारत की परम्परागत नीति के अनुरूप प्रस्ताव था। नरेन्द्र मोदी ने शपथ ग्रहण के अवसर पर सार्क देश के शासकों को बुलाया था। इसका संदेश साफ था। नरेन्द्र मोदी यह बताना चाहते थे कि भारत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ शांति और सौहार्दपूर्ण संबंध रखना चाहता है। जिससे इस क्षेत्र का विकास हो सके।

सार्क को एक सफल और सार्थक संगठन के रूप में विकसित करने का यह एकमात्र रास्ता था। उस समय भी नवाज शरीफ ने नरेन्द्र मोदी के प्रयासों की सराहना की थी। अपनी तरफ से सहयोग का वादा किया था।
लेकिन वापस पाकिस्तान लौटने के बाद नवाज शरीफ अपना वादा नहीं निभा सके। सेना ने उन्हें भारत के साथ संबंध सामान्य बनाने से रोक दिया। पाकिस्तान के साथ यही सबसे बड़ी समस्या है। दूसरे देशों के साथ मुख्य वार्ता सत्ता में बैठे लोगांे के बीच होती है। यह निर्णय सेना नहीं करती। ना किसी देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पाकिस्तानी सेना प्रमुख से द्विपक्षीय वार्ता करता है।

वार्ता तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से होती है। उसी आधार पर तय होता है कि संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में क्या किया जायेगा। लेकिन पाकिस्तान की हकीकत सभी प्रयासों पर पानी फेर देती है। इस समस्या से केवल भारत ही परेशान नहीं है। यह संयोग था कि जिस समय पाकिस्तान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वर्ता के मद्देनजर अपना रंग दिखा रहा था, उसी समय नवाज शरीफ की अक्टूबर में अमेरिका यात्रा का प्रस्ताव बनाया जा रहा था।

इस पर अमेरिका के ही कई जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों का कहना था कि नवाज शरीफ और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के बीच प्रस्तावित वार्ता से खास उम्मीद नहीं की जा सकती। इसका कारण यह है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री उन बातों पर आगे नहीं बढ़ सकते, जिन पर वह शीर्ष वार्ता की मेज पर सहमति व्यक्त कर चुके होते हैं। वह अपने देश में लौटकर सेना के रहमोकरम में हो जाते हैं। तब खासतौर पर विदेश नीति पर उनका नियंत्रण नहीं रह गया।
पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने वाले कदमों में यही समस्या है। यह समस्या भारत की जिम्मेदारी बढ़ा देती है। हमको सीमा पर सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, पाकिस्तानी हरकतों का माकूल जवाब देना होगा। इसका दूसरा कोई विकल्प नहीं है। इसके अलावा भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा के अनुरूप अपने दायित्वों का निर्वाह भी करना होगा।

नरेन्द्र मोदी का अपने शपथ ग्रहण समारोह में नवाज शरीफ को बुलाना तथा ऊफा में उनके साथ वार्ता करना उन्हीं दायित्वों का निर्वाह था। भारत में निर्वाचित प्रधानमंत्री राष्ट्र का वैश्विक स्तर पर प्रतिनिधित्व करते हैं। वह जो वादा करते हैं, उसके निर्वाह की हैसियत में होते हैं।

मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता शुरू करने का वादा किया। इसके बाद ही उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को द्विपक्षीय वार्ता की तैयारी करने का निर्देश दिया। डोभाल ने वार्ता से पहले ही पूरी तैयारी कर ली थी। बताया जाता है कि उन्होंने किसी भी बिन्दु को छोड़ा नहीं था। सभी प्रश्न तैयार कर लिये गये थे, जिनको पाकिस्तान के सम्मुख रखना था, इतना ही नहीं उन संभावित प्रश्नों का जवाब भी तैयार किया गया था, जिन्हें पाकिस्तानी पक्ष उठा सकता था।

इतनी व्यापक तैयारी इसलिए की गयी, क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी समकक्ष से इसका वादा किया था। भारत के प्रजातंत्र की वास्तविकता और गहरी जड़ों का इससे अनुमान लगाया जा सकता है। दूसरी ओर पाकिस्तान है। ऊफा में नवाज सहमत हुए थे कि आतंकवाद रोकने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की वार्ता होगी, तथा इस वार्ता में कश्मीर का मसला नहीं उठाया जायेगा।
नवाज शरीफ के इस वादे पर पाकिस्तानी अधिकारी किस प्रकार की तैयारी कर रहे थे, यह देखना दिलचस्प है। उनकी तैयारी अपने ही प्रधानमंत्री की बातों को ध्वस्त करने के लिये चल रही थी।

शरीफ ने कहा था कि कश्मीर की चर्चा नहीं होगी, उनके अधिकारी कश्मीर का मसला उठाने और हुर्रियत नेताओं से मुलाकात का प्रस्ताव बना रहे थे। यह शरारती तैयारी थी। भारत अलगाववादियों से वार्ता की पाकिस्तानी कोशिशों के कारण ही सचिव स्तर की वार्ता स्थगित कर चुका था। जाहिर है कि पाकिस्तानी अधिकारी जानबूझकर वार्ता को रोकने का प्लान बना चुके थे।
वार्ता पर पानी फेरने की पाकिस्तानी चाल के पीछे इस बार दो प्रमुख कारण थे। परम्परागत और दूसरा तत्कालिक कारण था। परम्परागत कारण यह था कि सेना देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री को उसकी औकात बताना चाहती थी। वह बताना चाहती थी कि प्रधानमंत्री के वादों को धूल में मिलाया जा सकता है।

सेना का निर्णय सर्वोच्च होता है। तात्कालिक कारण यह कि पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज भारतीय समकक्ष अजीत ढोभाल का सामना करने की स्थिति में ही नहीं थे। पाकिस्तान की इस हकीकत को स्वीकार करते हुए हमको अपनी सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।

-डाॅ. दिलीप अग्निहोत्री